पृष्ठ:वोल्गा से गंगा.pdf/३०१

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

________________

३०० वोल्गासे गंगा इवा खाना चा िजगह पड़ी नहीं । राजाका नाम सुनकर थकते हैं, इनके लिये राजा शैतान या आग उगलनेवाला नाग है।" । लेकिन, कमल ! क्या इसमें कुछ सत्यता नहीं है ? फ्लोरेन्सके किसानोंसे तुलना करो हिन्दके किसानोंकी । क्या यहाँ वह नंगे-सूखे हाड़ कहीं दिखलाई पड़ते हैं ? “नहीं, प्रिये ! और इसीलिये कि यहाँ शाही शान-शौकत पर करोड़ों खर्च नहीं करना पड़ता है। "वेनिसृ में धनकुवेर हैं, और कितने ही हमारे जगत् सेठोंको मात करते हैं । | "हमारे जगत् सेठ लाख पर लाल झडियाँ गाड़नेवालें । मैं तो सोचा करता था, यह चहबच्चेके रुपये और अशर्फियाँ अधेरे में पड़ी पड़ी क्या करती हैं ! इन्हें हवा खाना चाहिये, एक हाथसे दूसरे हाथमें जाना चाहिये । इनके बिना मिठाई अपनी जगह पड़ी पड़ी सूखती है, फल अपनी जगह सड़ते हैं, कपड़ोंको गोदामोंमें कीड़े खाते हैं । और इन्हें गाड़कर हमारे सैठ लाल झंडियाँ गाड़ते हैं। लोग देखकर कहते हैं, सौ झंडियाँ हैं, सेठ करोड़ीमल हैं।” सूर्य की लाली कबी खतम हो गई थी, अब चारों ओर अंधेरा छाया हुआ था। समुद्रकी लहरोंके किनारे पत्थरों परसे टकरानेकी आवाज लगातार आ रही थी। तरुण-तरुणी अभी भी बालू परसे उठना नहीं चाहते थे। वह सागरको सचमुच अपनी प्रिय संबंधी समझते थे । यद्यपि उन्हें स्वयं स्थलके रास्ते सफर करना पड़ा था, किन्तु, उन्हें मालूम था कि उनके सामनेके समुद्रको एक छोर हिन्दसे लगा हुआ है, इसीलिए उनके मनमे कभी कभी ख्याल आता था, क्या इस पारसे उस पारको मिलाया नहीं जा सकता । | कितनी ही रात गये दोनों लौट रहे थे । उस अंघियारी रात और अपने हृदयकी अवस्था देखकर सुरैयाने कहा हमारे बादशाहने अपने राज्यमें शान्ति स्थापित करनेके लिये हैं। और