पृष्ठ:वोल्गा से गंगा.pdf/३००

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सुरैया २६ बालूपर बैठे दो तरुण-हृदय इसका आनन्द ले रहे थे। ललाईकै चरमसीमा पर पहुँच जाने पर एकनै कहा सागर ! हमारा इष्टदेव, कितना सुंदर है !!' । हम सागरकी सन्ताने हैं, अब इसमे कुछ सन्देह रहा प्रिये १" नहीं, मेरे कमल जैसे कमल ! हमने क्या कभी ख्याल भी किया था, सागरने अपने गर्भमैं ऐसे स्वर्गलोकको छिपा रखा है ।। •"पूर्ण न हो, किन्तु वेनिसको आदमियोंने स्वर्ग बनाया है प्रिये । -इसमें सन्देह नहीं।" | "मैं माधुरी पर विश्वास नहीं करती थी, जब वह कहती थी, इमारे देशमें कुल-बधुयें. कुल-कन्याये ऐसे ही स्वच्छन्द, अवगुंठन रहित घूमती हैं, जैसे पुरुष । और आज इस स्वर्ग में रहते हमें दो साल हो गये। मिला, प्रिय ! बेनिस् को दिल्ली से ।" । "क्या हम कभी विश्वास करते, सुरैया ! यदि कोई कहता, कि बिना राजाकै भी फ्लोरेन्स जैसा समृद्ध राज्य चल सकता है और वेनिस जैसी नगरोंकी रानी हो सकती है ? “क्या सुरैया ! दिल्लीमें हम इस तरह स्वच्छद विहर सकते "

  • "बुर्केके विना १ पालकीके भीतर मॅद-माँद कर जाना पड़ता, प्रिय कैमल ! और यहाँ हमें हाथमें हाथ मिलाये चलते देखकर कोई नज़र भी उठाकर नहीं देखता ।
  • किन्तु गुजरातमें हमने देखा था अनावृतमुखी कुलगनाको, सुना था, दक्षिणमें भी पर्दा नहीं होता।
  • इससे जान पता है, किसी समय हिन्दकी ललनाये भी पर्देसे मुक्त थीं । क्या कभी हमारा देश फिर वैसा हो सकेगा कमल ११ | "हमारे पिताओंने तो अपने जीवन भर कोशिशकी। यह छोटा-सा फ्लोरेन्स देश जिसे तीन दिन में आर-पार किया जा सकता है । ज़रा देखो, इसकी और सुरैया | यहाँ के लोग कितने अभिमानकै साथ शिर उन्नत • किये चलते हैं। यह किसीके सामने सिंज्दा, कोर्निश करना जानते ही