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२९६ वोल्गासे गंगा “भाभी साहिबा को भी मालूम है, कमल ! मुझे अब साफ जान पड़ रहा है । रातमें उनके घर गई थीं, उन्होंने मज़ाक में कहा-ननद ! मैं, नन्दोई के लिये तरस रही थी किंतु सुरैया मेरी ननद ! अब मेरी साध पूरी होने जा रही है। उन्होंने तुम्हारा नाम नहीं लिया । | इसका मतलब है भाई साहेबने भाभीको बतलाया, और दोनों को हमारा प्रेम पसंद है।" तो तुम्हारी सारी ससुराल तुम्हारे कदमों में है कमल और तुमने मौको अपने पक्षमे करके कमाल किया | चाचीकी पूजा पाङको तुम लोग ख्याल करते हो कमल । यदि तुम्हें पता होता कि वह मुझे कितना प्यार करती हैं, तो शायद उनपर सन्देह भी न होता । | "इसीलिये उनपर चलाने के लिये पिताजीने अन्तिम हथियार तुम्हींको रखा था किन्तु, उस हथियारके पहले ही किला फतेह हो गया। अब हमलोगोंका व्याइ होने जा रहा है। "न पंडितके पास न मुलाके पास ।” हमारे अपने पैगंबर के पास, जो हिन्दमें नई त्रिवेणीका नया दुर्ग निर्माणकर रहा है ।। “लो गढे-गढ़हियों, नदी-नालको निर्मल समुद्र बनाना चाहता है।" “परसों ऐतवारको, सुरैया !

    • परसों !"कहते कहते सुरैयाकी आँखोंमें नर्गिसमें शबनमूकी तरह आँसू भर आये । कमलने उसका अनुकरणकर उसकी आँखों को चूम लिया। दोनोंको नहीं पता था, कि कहीं छिपी-चार आखें भी उन्हींकी भाँति आनन्दाथु बहा रही हैं।

वसन्तकी गुलाबी सर्दी, संध्याको बेला, डूबते सूर्य की गिरती लाल किरणसि आग लगा सागर--देखने में कितना सुंदर दृश्य था। सबके