पृष्ठ:वोल्गा से गंगा.pdf/२९८

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सुरैया २९७ । दूर दूर रखना ! | क्यों नहीं है पहले कैसे उछलकर मेरे कन्धेसे लटकती हाथों को तोड़ती । “सारी शिकायतोंका खसरा मत पेश करो कमल | कहो, कोई नई खबर । नई खबर है सुरैया ! हमारा प्रेम प्रकट हो गया ।" “कहाँ ? * हमारे दोनों घरोंमें और आला हज़रत बादशाह सलामत तक ।” "बादशाह सलामत तक ] **क्यों हर तो नहीं गई सुरैया ! नहीं, प्रेम कभी न कभी प्रकट होने ही वाला था। लेकिन, अभी कैसे हुआ है। इतना विवरण तो मैं भी नहीं जानता, किन्तु पता लगा कि चाचा चाचीने ही पहिले इसका स्वागत किया, फिर पिता और बादशाह सलामतने । और सबसे पीछे मने ।” माँ ने ११ **माँसे लोगोको डर था, जानती हो वह बड़े पुराने विचारोंकीस्त्री हैं ? लेकिन, अभी मेरे गालोंसे चाचीके चुंबनके दाग मिटे न होंगे । हाँ, ख्याल गलत निकला, जब उनसे पिताजी ने कहा तो वह बहुत खुश हुई ।' तो हमारे प्रेमका स्वागत हुआ है ।। "जो हमारे हैं, उन सभी घरोंमे । किन्तु बाहरी दुनिया इसके लिए तैय्यार नहीं है ।" । 'इस बाहरी दुनिया की तुम पर्वाह करते हो कमल १५

  • बिल्कुल नहीं सुरैया ! ही हम पर्वाह करते हैं आनेवाली दुनियाकी, जिसके लिये इस यह पथप्रदर्शन करने जा रहे हैं।