पृष्ठ:वोल्गा से गंगा.pdf/२९७

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वोपासे गंगा एक नई मिट्टीकी इंडिया पड़ी हुई थी। सुरैयाने पास जाकर कमलकै हाथको अपने हाथोमे लेकर कहा “लाल-पीली मछलियाँ लाये हों, कमल भाई ! हाँ, और सुनहरी भी।" "देखें तो–कह सुरैया झुककर हँडियामै झाँकने लगी ।

  • मै इन्हें हौज़मे डालता हूँ, उसमे देखनेमें ज़्यादा सुन्दर मालूम होंगी, बिल्लौरी हौज़की चमकती तहमें उन्हें देखो, सुरैया ।।

सुरैया ओठा और आँखों में हँसीको विकसित करते हुए हौके पास खड़ी होगई। कमलने हँडियाकी मछलियोंको हौज़में उँडेल दिया। सन्चमुच बिल्लौरी हौज़मे उनको लाल-गुलाबी-सुनहरा रग बहुत सुन्दर मालूम होता था। कमलने गम्भीरतासे समझाने हुए कहा “अभी छोटी हैं सुरैया ! लेकिन बढ़नेपर भी छै अंगुलसे छोटी ही रहूँगी । | "अभी भी सुदर हैं कमल !" *"यह देखो, सुरैया ! इसका कैसा रंग है ?? गुलाबी । "जैसे तुम्हारे गाल, सुरैया !" “बचपनसे भी तुम ऐसेही कहा करते थे कमल भाई ! "बचपन में भी ऐसेही थे सुरैया !! बचपनमें भी तुम मीठे लगते थे कमल । और अब १) "अब बहुत मीठे । ' "बहुत औ कम क्यों है । , न जाने क्यों, जबसे तुम्हारा स्वर बदला, जबसे तुम्हारे ओठौं पर हल्की कालीसी रोयोंकी पाँती उठने लगी, तभी से, जान पड़ता है, प्रेम और भीतर तक प्रविष्ट कर गया । । और तभीसे; कमलको तुसनै दूर दूर रखना शुरु किया ।