पृष्ठ:वोल्गा से गंगा.pdf/२९६

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२९५ सुरैया अकवर--सबसे पहिले आशीर्वाद देनेका हुकृ मुझे मिलना चाहिये ।। बीरबृल---और मुझे जल्लू ! अपने साथ नहीं रखोगे १० अकबर-जरूर ऐसा धोबी कहाँ मिलेगा ।” बीरबल-और ऐसा घोड़ा बननेवाला गदही भी कहाँ ।” अकबर---और आजकी हमारी गोष्टी कितनी आनन्दकी रही। कहीं इस तरहका आनन्द महीनेमें एक दिनके लिए भी मिला करता !" छतपर चारों ओर किवाड़ लगा एक सजा हुआ कैमरा है, जिसकी छतसे लाल, हरे, सफेद झाड़ देंगे हुए हैं। दरवाज़ोंपर दुहरे पर्दे हैं, जिनमें भीतरी पर्दै बूटेदार गुलाबी रेशमके हैं। फर्शपर सुन्दर ईरानी कालीन बिछा हुआ है। कमरेके बीचमें सफेद गद्दीपर कितनेही गावतकिये लगे हुए हैं। गद्दीपर तरुणिय बैठीं शतरंज खेल रही हैं, जिनमें एक वही हमारी परिचिता सुरैया है, और दूसरी लाल धाँधरे, हरी चोली तथा पीली औढ़नीवाली फूलमती-बीरबलको १३ वर्षकी लड़की है। वह दोनों चाल सोचनेमें इतनी तल्लीन थीं, कि उन्हें गहीपर बढ़ते पैरों की आहट नहीं मालूम हुई । सुरैया !' की आवाज़पर दोनोंने नज़र ऊपर उठाई और फिर खड़ी होगई । सुरैयाने "चाची !" कहा, और कमलकी माँ ने गलैसे लगा उसके गालोंको चूम लिया। सुरैयाकी भी ने कहा बेटी ! जा, कमल तेरे लिए लाल मछलियाँ लाया है, हौज़में भालने के लिए; तबतक मैं मुन्नीसै शतरंज खेलती हूँ ।।

  • मुली बड़ी होशियार है अम्मा ! मुझे दोबार मातकर चुकी है, इसे छोटी छोकरी न समझना–कह सुरैया चादरको ठीक करती जल्दीसे कमरे से बाहर निकल गई।

महलके पिछले बारामें हलके पास कमल खा था, उसके पास