पृष्ठ:वोल्गा से गंगा.pdf/२९५

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૨૩૪ वोल्गासे गंगा अकबर-मेरी आँखे तरसती ही रह गई, कि हिन्दू तरुण भी मुसलमान तरुणियोंसे ब्याह करे, विना अपने नाम और धर्मको छोड़े।" अबुलू-फजल--यहाँ मैं एक खुशखबरी सुनाऊँ भाई जलाल ! मेरी सुरैय्याने वह काम किया जो हम नहीं कर सके ।” सब उत्सुक हौ अबुलू-फ़ज़लकी और देखने लगे । “तुम लोग उत्सुक हो आगे सुननेको । जरासा मुझे बाहर हो आने दो,-कह अबुल्-फज़लने बाहर कठघरेके किनारे खड़ा हो देखा, फ़िर आकर कहा "सुनाना, नहीं दिखाना अच्छा होगा, मेरे साथ चलो ।। सब उसी कठघरे के पास पहुँचे । अबुल्-फजलने हरे अशोकके नीचे पत्थरकी चौकीपर बैठी दो तरुण मूर्तियोंकी ओर अँगुली करके कहा“बह, देखो १ मेरी सुरैय्या । टोडरमल-"और मेरा कमल ! दुनिया हमारे लिए अँधेरी नहीं है, भाई फज़लू !' कह टोडरमलने अबुल फज़लको दोनों हाथों में बाँध, गले लगा लिया। दोनों मिलकर जब अलग हुए तो देखा चारोंकी ले गीली हैं। अकबरने मौनको भग करते हुए कहा मैंने तरुणका यह वसन्तोत्सव कितने वर्षोंसे कराया, किन्तु असली वसन्तोत्सव आज इतने दिनों के बाद हुआ । मेरा दिल करता है, बुलाकर उन दोनोंकी पैशानीको चूमें। कितना अच्छा होता, यदि वह जानते कि हम उनके इस गंगा-यमुना-संगमको हृदयसे पसन्द करते हैं।" अबुलफज़ल-सुरैय्याको यह मालूम नहीं है कि उसके मां-बाप इस प्रणयको कितनी खुशीकी बात समझते हैं । टोडरमल-कमलको भी नहीं मालूम; मगर तुम बड़े खुशकिस्मत, हो फज़लू | जो कि सुरैय्याकी माँ भी तुम्हारे साथ है। कमलकी माँ और सुरैय्याकी माँ दोनों पक्की सखियाँ हैं, तो भी कमलकी भी कुछ पुराने ढकी है। कोई हर्ज नहीं, मैं कमल और सुरैय्याको आशीर्वाद दूंगा।”