पृष्ठ:वोल्गा से गंगा.pdf/२९४

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सुरैया वीरताके खिलाफ़ है। मैंने शेरको तुफंगसे मारा ।।गोली . उसके शिरमे लगी। शेर कूदकर वहीं गिर गया। उसी वक्त मैंने देखा झाड़ी मेसे छलांग मारती शेरनीने एक बार मेरी ओर घृणाकी दृष्टि से देखा, फिर मेरी तरफ पीठकर वह शेरके गालोंको चाटने लगी। मैंने तुरन्त शिकारियों को गोली रोकनेका हुकम दिया और हाथी वहाँसे लौटा लाया। उस बक्त मेरे मनपर ऐसी चोट लगी थी, कि यदि शेरनी मुझपर हमला भी करती, तो मैं हाथ न छोड़ता। मैं कितने ही दिनों तक ग़मगीन रहा । उस वक्त मैंने समझा, यदि शेरकी भी हजार पाँचसौ शैरनियाँ होतीं तो क्या वह उस वक्त शेरके गालको इस प्रकार चाटतीं ।” अबुल-फज़ल-"हमारे देशको कहाँ तक चलना है, और हमारी गति कितनी मद रही है। फिर हमे यह भी मालूम नहीं कि जब चलनेके लिये हमारे पैर नहीं रहेंगे, तो कोई हमारे भारको वहन करनेवाला होगा भी ।” । अकबर--"मैने चाहा, तलवार चलानेवाली दोनों हिन्दू-मुसलिम जातियोंके खूनका समागम हो; इसी समागमकी ओर ध्यानकर मैंने प्रयास की त्रिवेणी पर किला बनाया। गगा यमुनाको घाराका वह संगम-जिसने मेरे दिलमें एक विराट् सगमका विचार पैदा किया। लेकिन, देखता हैं, कि मैं उसमें कितना कम कामयाब रहा। वस्तुतः जो वात पीढ़ियोंके प्रयत्नसे हो सकती है, उसे एक पीढ़ी नहीं कर सकती । किन्तु मुझे इसका सदा अभिमान रहेगा, कि जैसे साथी मुझे मिले, वैसे साथ बहुत कमके भाग्यमे बदै होंगे । मैं देखना चाहता था घर-घरमें अकबर और जोधाबाई, मेहरुन्निसा और कौन जिसे मैं पा नहीं सका।" टोडरमल- 'हिन्दू इसमें ज़्यादा नालायक साबित हुए । बीरबल-"और अब गदहेको घोकर घोड़ा बनानेकी कथा गढ़ रहे हैं। लेकिन, यदि हिन्दू मुसलमानोंमें इतना फर्क है, तो घोड़ा गदहा कैसे हो जाता है ? क्या हज़ारों हिन्दू मुसलमान हुए नहीं देखे जाते १५ ।५ । । । । : । '