पृष्ठ:वोल्गा से गंगा.pdf/२९३

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२६२ बोलणासैः गंगा टुकड़े टुकड़े में बँटा होना। यदि केवल हिन्दुस्तानकी तलवारे इकट्ठा ही जाती है । अकबर-बस मेरी एक मात्र यही इच्छा थी मेरे प्यारे साथियो । इमने इसके लिये इतने समय तक संघर्ष किया। जिस वक्त हमने काम शुरू किया था, उस वक्त चारों ओर अँधेरा था, किन्तु, अब वही वात नहीं कह सकते । एक पीढ़ी जितना कर सकती थी, उतना हमने किया, किन्तु यह गदहे घोड़ेकी बात मेरे दिल पर पत्थरकी तरह बैठ रही है। | अबुल-फ़ज़ल----' भाई जलाल ! हमें निराश नहीं होना चाहिये । मिलाओ, इसे खानखानाके समयले । उस वक्त क्या जोधाबाई तुम्हारी स्त्री बनकर महलेसराम विष्णुकी मूर्ति पूजे सक्रर्ती ?" अकबरफर्क है क्वज़न ! किन्तु हम मंजिल कितनी दूर चलनी है। मैंने फिरंगी पादरियोंसे एक बार सुना, कि उनके मुल्कमें वड़ेसे बड़ा बादशाह भी एकसे अधिक औरतसे व्याह नहीं कर सकता। मुझे यह राज कितना पसद आया, इसे डोडर ! तुमने उस वक्त मेरी बातों सुना होगा । यदि यह कहीं मैं कह सकता ! किन्तु वादशाह बुराइयों करनेकी जितनी स्वतंत्रता रखते हैं, उतनी भलाइयोंकी नहीं, यह कैसी विडम्वना है । यदि हो सकता तो मैं रनिवासमे सलीमकी माँ को छोड़ किसीको न रखता । आज यदि सलीमके लिये भी ऐसा कर पाया होता ! बीरबल-प्रेम तो जलाल ! सिर्फ एकसे ही हो सकता है। जब मैं हँसोंके मनोहर जोड़ोंको देखता हूँ, तो मुझे मालूम होता हैं, कि उनका जीवन कितना सुन्दर हैं। वह जिस तरह आनन्दके साथ होते हैं, उसी तरह बिपताके भी साथी ।” अकबर--मेरी आँखोंने एक बार आँसू निकल आये थे भाई वी! मैं शैरके शिकारमें गया था, गुजरात में । हाथीपर चढ़कर तुफंग (पलीतेवाली बंदूकसे शेरको मारना कोई बहादुरी नहीं है, इसे मै मानता हूँ। तुम्हारे पास शेर जैसे पंजे और जबड़े नहीं हैं, तुम भी ढाल तलवार लेकर उसके बराबर हो सकते हो, किन्तु इससे ज्यादा रखना