पृष्ठ:वोल्गा से गंगा.pdf/२९२

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सुरैया २६१ कपड़ा पाटेपर नही पटका जाता था, बल्कि एक मोटे ताजे गदहेको रेह और रीठेसे मलमलकर धोया जा रहा था। बादशाहने अपनी मुस्कुराहटको दबा, स्वर बदलकर पूछा क्या कर रहे हों चौधरी ! 'अपना कामकर भाई ! तुझे क्या पड़ी है ? 'बड़े बेवक जाहे-पाले में उर रहे हो चौधरी ! 'मरना ही होगा, कल ही इसे घोड़ा बना बादशाहको देना है। गदहेको घोड़ा बना ।।। क्या करना है, बादशाहका यही हुकम है । "बादशाहने हंसकर अपनी आवाज़मे कहा-'चलो, बीरबल ! मैं समझ गया मुसल्मानका हिन्दू होना गदहेसे घोड़ा होनेके बराबर है।" "भाई फ़नल ! इस कहानीको सुनकर जान पड़ा, शरीरमे साँप इँस गया। अकबर---"और यह कहानी हमे अपने जीवनकी सध्याम सुननेको मिल रही है ! क्या हमारे सारे जीवनके प्रयत्नका यही परिणाम होगा ।” अबुल-फज़ल-जलाल ! हम अपनी एक ही पीढ़ीका जिम्मा ले सकते हैं । हमारे प्रयत्नको सफल-असफल बनाना बागमे वसन्तोत्सव मनाना इन सूरतोंके हाथोमें है।" टोडरमल-“लेकिन, भाई । हमने मुसल्मानको हिन्दू या हिन्दूको मुसलमान बनाना नहीं चाहा । अबुल-फ़ज़ल-“हमने तो दोनोंको एक देखना चाहा, एक जात, एक बिरादरी बनाना चाहा।" बीरबल--"लेकिन, मुल्ले और पंडित हमारी तरह नहीं सोचते । हम चाहते हैं, हिन्दुस्तानको मज़बूत देखना । हिन्दुस्तानकी तलवारमे ताकत है, हिन्दुस्तानके मस्तिष्कमें प्रतिभा है, हिन्दुस्तानके जवानों में हिम्मत है। किन्तु, हिन्दुस्तानका दोष, कमजोरी है, उसका विखराव,