पृष्ठ:वोल्गा से गंगा.pdf/२९

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

________________

वोलासे गंगा हुआ, हम हर शरदमें यहीं कर रहते रहे। किन्तु मूखे मरकर न्याय करनेके लिए निशा-जन कैसे तैयार होता है सब कानून जब विफल हो जाते हैं तो जंगलके कानूनकी शरण लेनी ही पड़ती है। दोनों जन भीतर-भीतर इसके लिए तैयारी करने लगे। एकका पता दूसरेको मिल नहीं सकता था, क्योंकि प्रत्येक जन व्याह-शादी, जीना-मरना सब कुछ अपने जनके भीतर करता था। निशा-जनका एक गिरोह दूसरे मृगया-क्षेत्रमें शिकार करने गया, उषा-जनके लोग छिपकर बैठे हुए थे। उन्होंने आक्रमण कर दिया । निशा-जनके लोग भी डटकर लड़े, किन्तु वह तैयार होकर काफी संख्यामें नहीं आये थे। कितने ही अपने मरोंको छोड़, कितने ही घायलोको लिये वह भाग आये । जन-नायिकाने सुना, जन-समितिने इस पर विचार किया, फिर जन-संसद्-सारे जनके स्त्री-पुरुषों की बैठक हुई। सारी बात उनके सामने रखी गई। मरोंका नाम बतलाया गया। घायलों को सामने करके दिखलाया गया । भाइयों-बेटों माओं, बहिनों-बेटियोंने लूनका बदला लेनेके लिए सारे जनको उचॅजित किया । खूनका बदला न लेना जन-धर्मके अत्यन्त विरुद्ध काम है, और वह जन-धर्म विरोधी कोई काम नहीं कर सकता। जनने तय किया कि मकै खूनका बदला लेना चाहिये ।। नाचके बाजे युद्धके बाजोंमें बदल गये। बच्चों-वृद्धोंकी रक्षा के लिए कुछ नर-नारियोको छोड़ सभी चल पड़े। उनके हाथोंमें धनुष, पाषाणपरशु, काटे-शल्य, काष्ट-मुद्गर थे । उन्होंने अपने शरीर में सबसे मोटे चमड़ेके कंचुक पहिने थे। आगे-आगे बाजा बजता जाता था, पीछे इथियारबन्द नर-नारी । जन-नायिका दिवा आगे-आगे थी । दूर तक सुनाई पड़ती बाजेकी आवाज, और लोगों के कोलाहलसे सारी अरण्यानी मुखरित हो रही थी । पशु-पक्षी भयभीत हो यत्र-तत्र भाग रहे थे। अपने क्षेत्रको छोड़ वह अस्वामिक क्षेत्रमें दाखिल हुए-सीमाचिन्ह न होने पर भी हरएक जन-शिकारी अपनी सीमाको जानता है।