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२४ वोल्गासे गंगा "बहुत लूटते हैं। और, इनके ये बड़े-बड़े मठ, बड़े बड़े मंदर--- सदाबत तो इसी लूटसे चल रहे हैं।'

  • कहते हैं, घनी नहीं रहनेसे धर्म नहीं चलेगा। मैं कहता हूं जब तक धनी रहेंगे तब तक अधर्मका पलड़ा भारी रहेगा।"

| "ज्ञानी-ध्यानी, पीर-मैगंबर, ऋषि-मुनिसे बढ़कर धर्मपर चलने वाला कौन होगा १ लेकिन, उनके पास एक कमली, एक कफनीले बैशी क्या था ? इंसान भाई-भाई नहीं बन सकतें जब तक गरीबोंकी कमाईसे पलनेवाले अमीर हैं । और सुल्तान भी मित्र ज्ञानदीन आदमी-आदमी में फूट डालनेवाले यही इकट्ठा सिमटी माया है; किन्तु, उसकी शानशौकत भी तो नहीं चले, अगर कमैरोंकी कमाई न नोचे १५ उन दिनोंकी उम्मीद रखे, मित्र ! जब सभी गोरखधंधे मिट जायेंगे और पृथ्वी पर प्रेमका राज्य कायम होगा ।