पृष्ठ:वोल्गा से गंगा.pdf/२८३

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वोगासे गंगा अपनैको हिन्दू ब्राह्मण कहनेवाले यह अपनी स्त्रियोंको सात पर्देकी बेगमें बनाने जा रहे हैं । “हाँ, चौधरी । मेरे दादा कहते थे, उन्होंने कन्नौज और दिल्लीकी रानियोंको नगे मुंह घोड़े पर चढ़े देखा था ।” ब्राह्मणने कहा--"लेकिन चौधरी ! उस वक्त कोई मुसलमान इमारी इज्जत लूटनेवाला न था । "आज भी हमारी इज्ज़त हार-खेतमें डोलती फिरती है, कोई उसे नहीं लूटता ।। और लुटती भी यदि थी, तो चौधरी मंगलराम ! जब इस ब्राह्मणका--सिब्बेकी चली थी ।" "मुक्तकी खानेवाले--एक दूसरेकी इज़्ज़त लूटना छोड़ और क्या करेंगे ! यह हिन्दू-मुसल्मानका सवाल नहीं पंडत, यह मुक्तखोरोंका काम है । पक्के हिंदू हम हैं, पडत ! हमारी औरतें कभी सात पर्दै नहीं रहेंगी । ब्राह्मणने फिर एक बार साहस करके कहा---'अरे चौधरी ! तुम्हें पता तो नही हैं, सुल्तान सेनापति मलिक काफूरने दक्खिनमें जा हमारे मन्दिर तोड़, देव-मूर्तियोंको पाँवों तले रौदा ।” | "हमने बहुत सुना है, पडत ! एक बार नहीं, इजार बार । मुसल्मानी राजमे हिन्दूका धर्म नहीं । लेकिन, हम दिल्लीवे बहुत नजदीक रहते हैं, पडत । नहीं तो हम भी विश्वासकर लेते । हमारे बीस कोसमें न तो कोई मंदर ताड़ा गया, न देवताओंको पाँवके नीचे दबाया गया। "चौधरी मगलराम ! यह बिल्कुल झूठ है तो तुम मुझसे भी ज्यादा दिल्ली जाते-आते रहते हो। मैं कितनी ही बार दशहरा देखने दिल्ली गया हूँ। कितना भारी भेला होता है---आधीसे ज्यादा औरते होती हैं। हिन्दूको मेला, मेलेवाले भी ज्यादातर हिन्दु । देवताओंको सजाकर सुल्तानके झरोखेके नीचे से ले जाते हैं, सब शख, नगाड़ा, नरसिंगा बजाते हैं ।