पृष्ठ:वोल्गा से गंगा.pdf/२८२

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| २८१ बाबा नूरदीन तुम गाँव के सरपंच हो, कैसे सब काम चला लेते हो ? अमला तो अमला, ये बनिये एक रुपयेमें दो रुपयेके नाज उठा ले जाते थे । जेठ भी नहीं बीतता था और घरोंमें चूहे खंड पेलने लगते थे । “हम तो यही कहते हैं, हमारा सुल्तान लाख बरस जीता रहे । यात्री ब्राह्मण इन उजवा अहीरोंकी तारीफ सुन-सुनकर कुढ रहा था और कुछ बोलनैका मौका हूँढ रहा था । गुड़ खा, पानी पी लेने बाद वह और उतावला हो गया था। वह चौघरियोंकी बात न खतम होते देख बीच हीमें बोल उठा–सुल्तान अलाउद्दीनने पचायत आप लोगोंको दी--" “हीं पंडत ! तेरे मुंहमें घी-शक्कर; लेकिन पंडत । न जाने किसने हमारे सुल्तानको नाम अलमदीन रख दिया। हम तो अपने गाँवमें अब उसै लामदीन कहते हैं ।” "चौधरी ! तुम कोई नाम रक्ख । लेकिन, जानते हो, सुल्तानने हिंदुओं पर कितना जुल्म ढाया है ? “हमारी अहीरियाँ तो चादर भी नहीं लेतीं ऐसे ही छाती उतानकर खेत-हार में रात-दिन घूमती फिरती हैं। उन्हें तो कोई उठा नहीं ले जाता है। “इज्ज़तवाले घरोंकी इज्ज़त बिगाड़ते हैं। 'तो पडत | हम बे-इज्ज़तवाले हैं, और कौन है सौरा इज्ज़तवाला १३ * तुम तो गाली देते हो चौधरी मगलराम | "लेकिन पद्धत ! तुम्हें मालूम होना चाहिये कि जबसे हमारी पंचायत लौटी, तबसे हमारी इज़्ज़त भी लौट आयी । अब हम जानते हैं, आमिल-अमले कैसे इज़्ज़तदार बने थे। हिन्दू-हिन्दू, मुसल्मानमुसल्मान कहते हैं । जो भी आमिल-अमले हुए, सब एक ही रंगमें गै थे, और फिर वह होते थे ज्यादातर हिन्दू ।” | चौधरी छैदारामने कोई बात छुटती देखकर कहा-और हम लोगोंसे कहते हैं, हिन्दू-मुसलमान-दोनों दो। देखा नहीं चौधरी !