पृष्ठ:वोल्गा से गंगा.pdf/२५७

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२५६ वोलासे गंगा 'तो कवि, कुमारी-पूजाके ही लिए तो तुम वहाँ नहीं गए थे ? 'हम भगवतीके उपासक शक्ति हैं, महाराज ? "लेकिन तुम राम-सीताकी वदना करते हो, तो मालूम होता है कि पक्के वैष्णव हो । 'अन्तः शाका वहिश्शैवाः सभामध्ये च वैष्णवाः । सभा मध्ये वैष्णव हो । ‘होना ही पड़ता है, महाराज ! हम आपकी तरह दूसरेकी जीभ थोड़े ही खिंचवा सकते हैं ?

  • धन्य हो नाना रूपधर । 'महाराज, इतना ही नहीं, मैंने सुगत ( बुद्ध को भी अपनी आराधनामें शामिल कर लिया है।

सुगत, भगवान् तथागतको भी । भगवान् !' "हाँ, छीः नाम आनेपर इस स्थानमें भी मेरी आँखोंमें ज़रा लजा आने लगती है। "वज्रयाननै महाराज, हम शाकोंके लिए सुगतकी पूजा सरल करे । 'ठीक कहा मित्र, इसीलिए तो उसे सहजयान कहते हैं। 'इन सहजयानी सिद्धोंके दोहों और गीतोंमे मुझे कोई कवित्व तो नहीं दिखलाई पड़ता; किन्तु पच मकार (भद्य, मास, मीन, भुद्रा, मैथुन का प्रचारकर जितना लोक-कल्याण इन्होंने किया है, उसके लिए मैं बहुत कृतज्ञ हूँ ।। 'किन्तु, अब मेरे लिए, जान पड़ता है, अखंड पंचमकारकी उपासना दुष्कर होगी।' वज्रयानके साथ नागार्जनका माध्यमिक दर्शन क्या सोने में सुगन्धि है ! "तुम्हारे काव्यका रस तो मैं चख लेता हूँ। यद्यपि कहीं-कहीं उसमें