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२३३० वोल्गासे गंगा भी तीक्ष्ण ज्ञान और तर्क के शस्त्रको वितरण करनेका ब्रत लिया है । उनसे आध घंटा बात कर लेने ही में ब्राह्मणोंका सारा मायाजाल क्राईकी भाँति छैढ जाता है। मैं छै मास अचिन्त्य बिहारमें रहा, और अतिदन दिङ्नागके मुखसे चारों और प्रकाशके फैलानेवाले उनके उपदेशोंको सुनता था, मुझे इस बातका अभिमान है, कि मुझे दिड्नाग जैसा गुरू मिला । उनका ज्ञान अत्यन्त गम्भीर है, उनके वचन आग दहते अगाकी भाँति थे। मेरी ही भाँति वह ससारके पाखंड मायाजाल को देख क्रोधोन्मत्त हो जाते । एक दिन वह कह रहे थे । | सुपर्ण ! प्रजाके ही बल पर हम कुछ कर सकते थे, किन्तु प्रजा दूर तक वृहक चुकी है। तथागत ( बुद्ध) ने जाति वर्णके मैदको उठा डालनेके लिये भारी प्रयास किया था। उसमें कुछ अंशमें उन्हें सफलता भी हुई । देशके बाहरसे यवन, शक गुर्जर, आभीर, जो लोग आये, इन्हें ब्राह्मण म्लेच्छ कहकर घृणा करते थे, किन्तु तथागतके संघने उन्हें मानवता के समान अधिकारको प्रदान किया। कुछ सदियों तक जान पड़ा कि भारतसे सारे भेद-भाव मिट जायेंगे, किन्तु भारतके दुर्भाग्य में इसी वक्त ब्राह्मणोंके हाथमें गुप्त राजसत्ता आ गई । गुप्त स्वयं जब अहिले आये थे, तो ब्राह्मण उन्हें म्लेच्छ कहते थे, किन्तु कालिदास ने उनके गौरवको बढ़ानेके लिये ' रघुवंश’ और ‘कुमार संभव” लिखा हैं। गुप्त अपने राजवंशको प्रलय तक कायम रखनेकी चिन्तामें पागल हैं, ब्राह्मण उन्हें इसका विश्वास दिला रहे हैं। हमारे भदन्त सुवधु ऐसा विश्वास नहीं दिला सकते थे। वह खुद लिच्छवियोंके गण-तंत्रके आधार पर निर्मित भिक्षु सुधके सच्चे अनुयायी थे। बौद्धोंको ब्राह्मण जबर्दस्त प्रतिद्वंद्वी समझते हैं, वह जानते हैं कि सारे देशों के बौद्ध गोमांस खाते हैं, जिसे वह नहीं छोड़ेगे, इसलिये इन्होंने भारतमै धर्मके -नामपर गोमास वर्जन-गो-ब्राह्मण रक्षाका प्रचार शुरू किया है। बौद्ध जाति वर्ण-भेदको उठाना चाहते हैं ब्राह्मणोंने अब वर्ण वहिष्कृत यवन शक आदिको ऊँचे ऊँचे वर्णं देने शुरू किये हैं। यह जबर्दस्त