पृष्ठ:वोल्गा से गंगा.pdf/२२०

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सुपर्ण यौधेय २१६ पुराने ग्रन्थों में मिलती हैं, जिन्हें आजकलके लोग विश्वास नहीं करेंगे । चर्मण्वती (चंबल)के किनारे दशपुरको देखा है दादा !” “हाँ, बच्चा I कई बार अवन्ती (मालवा में ही तो है। मैं कितनी ही बार बरात गया हूँ। वहाँ नागरोंके बहुतसे घर हैं, जिनमें कितने ही भारी व्यापारी सार्थवाह हैं ।” यही दशपुर रन्तिदेवकी राजधानी थी ।और चर्मण्वती नाम क्यों पड़ा, यह तो और अचरजकी बात है। "क्या बच्चा “ब्राह्मण सकृतिके पुत्र किन्तु स्वतः क्षत्रिय राजा रन्तिदेव अपनी अतिथिसेवाके लिए बहुत प्रसिद्ध हैं, वह सतयुगके सोलह महान् राजाओं मे हैं। रन्तिदेवके भोजनालयमें प्रतिदिन दो हजार गायें मारी जाती थीं। उनका गीला चमड़ा जो रसोई में रखा जाता था, उसीका टपका हुआ जल जो बहा, वही एक नदी बन गया। चर्मसे निकलनेके कारण उसका नाम चर्मण्वती पड़ा ।” सच ही, यह क्या पुरानै ग्रन्थोंमे मिलती है बच्चा १७ **हाँ, दादा महाभारत*में साफ लिखा है । “महाभारतमे, पाँचवे वेदमें ? गोमासभक्षण !

  • अतिथियों के खानेके लिए इस गोमासके पकाने वाले दो हज़ार रसोइये थे दादा ! और तिसपर भी ब्राह्मण अतिथि इतने बढ़ जाते कि रसोइयोंको मासकी कमोकै कारण सुप ज्यादा ग्रहण करनेकी प्रार्थना करनी पड़ती थी।
  • *राज्ञो महान्से पूर्व रन्तिदेवस्य वै द्विज ।' अन्यहनि बध्ये ६ सहस्र गवां तथा । “समांस ददतो अन्न रन्तिदेवस्य नित्यशः । अतुला कोचिरभवन्नृपस्य द्विजसत्तम !”–वनपर्व २००६-१० “महानदी चर्मराशेरुक्लेदात् संसूज यतः ।। सत्तश्चर्मण्वती त्येवं विख्याता सा महानदी ।'–शान्तिपर्व २९-२३