पृष्ठ:वोल्गा से गंगा.pdf/१८५

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१६ वोलासे गंगा देखनेमें शरीर कितना कोमल भालूम होता है; किन्तु तैरनेमें किंतन हुढ़ पहला-'इसके माँ-बाप दोनों बड़े स्वस्थ बलिष्ट हैं। 'नगरोद्यानमें ला विशेष सम्मान प्रकट करते हुए लोगोको दोनों तैराकका परिचय दिया गया, और उन दोनोंने भी लज्जावनत सिरसे एक-दूसरेका परिचय प्राप्त किया। साकेतका पुष्योद्यान सेनापति पुष्यमित्रके शासनका स्मारक था । सेनापतिने इसके निर्माणमें बहुत धन और श्रम लगाया था और 'यद्यपि अब न पुष्यमित्रके वंशका राज्य रहा, न साकेत कोई दूसरी श्रेणीकी भी राजधानी, तो भी नैगम (नगर-भो । ने उसे साकेतका गौरव समझ उसी तरह सुरक्षित रखा, जैसा कि वह दो सौ वर्ष पूर्व पुष्यमित्रके शासनकालमे था । बाराकै बीचमें एक सुन्दर सरोवर था, ‘जिसके नील विशुद्ध जलमे पद्म, सरोज, पुंडरीक आदि नाना वर्णोके कमल खिले तथा हंस-मिथुन तैर रहे थे । चारों और श्वेत पाषाणके 'भ्राट थे, जिनके सोपान स्फटिककी भाँति चमकते थे। सरोवरके किनारे "पर हरी दुबकी काफी चौड़ी मगजी लगी थी। फिर कहीं गुलाब, जूही, बेला आदि फुलौकी क्यारियाँ थीं और कहीं तमाल-कुल-अशोक-पंकियोंकी छाया । कहीं लता-गुल्मसे घिरे पाषाण-तलवाले छोटे-बड़े लताह थे और कहीं कुमार-कुमारियोंके कन्दुक क्षेत्र उद्यान में कई पाषाण, मृत्तिका और हरित वनस्पतिसे आच्छादित रम्य क्रीड़ा-पर्वत थे। कहीं-कहीं जलयंत्र ( फव्वारे) जल-शीकर छोड़ वर्षाका अभिनय कर रहे थे। | अपराहृमैं अकसर एक लतागृहके पास साकेतके तरुण-तरुणिकी भीड़ देखी जाती । यह भीड़ उनकी होती, जो भीतर स्थान न पा सके होते | आज भी बच्चा भीड़ थी; किन्तुं चारों ओरकी नीरवताके साथ। सभीकै कान लतागृहेकी और लगे हुए थे। और भीतर शिलाच्छादित