पृष्ठ:वोल्गा से गंगा.pdf/१७९

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वाला गंगा कितनी देर त चुप रहा, कि दोनीने ठिोंने इवा अश्ने झोल उसके पतिको हुगाकर कृहा नैरा प्रियतम ! तिना अच्छा है, नाग १ नाही ! मैं अपनेझो तुम्हारे योग्य नहीं उमझवा । मैं अपने दमकती हूँ। मेरे नाग ! अव नृत्यु तक हम साय गें ।” नागदत्तने आँसुओं बाँध अब इवा, उसने चहा-नृत्यु तक : नागदत्तकी बड़ी इच्छा थी, सुनामीकी खाड़ी देखने, जहाँ कि चन नौनाने शन्नो नवदुत्व पराजय दी थी। दोनों यज्ञके रावे चले जा रहे थे । नागदच अपने नया डाह ग रहा था, और उन्ना ल्यान्न रह हर वशिलाज्ञी शोर दावा था। दोनों रास्ते में एक के नीचे विश्रान्झर रहे थे, उस वक्त वोफियाने कहा सुना न नाग ! निलंय मर गया, अनिलंदर मझवूनिया राना बना है, और वह बुई जबदल वैनिक तैयारी कर रहा है। | "हाँ, इङ्घ नारे बन्न ( भूमध्य )-सागर तट पर अधिकार करना चाहता है। किन्तु इनके पुत्र और दक्षिणी (मिश्रका ) वट तो पाशवोंके हाथमें हैं। तिज्ञा अर्थ है, वह पाशीचे युद्ध झरना चाहता है ।। और इस प्रकार गणवंत्री बनने अपने राज्यकी स्थापनाने सायदा लेना चाहता है। एक उन दो चिडिया नारना चाहता है। ची! शाहंशाको यवन धागर इटाना—चदि और आगे न बढ़ सक्का दौर अभिमानी यवनगयोंकी रानमन्त्रि प्राप्त करना है। अरस्तूने उनको शिक्षा दी, अनुनै उठले चाहदको बढ़ाया ! "दाशनिक अरस्तूने । “हाँ, और उइके गुर अफवार्तंने एक आदर्श गणही कलना की यी, किन्तु उसने भी उठने साधारण जनताको इरा -चरवाहा ।