पृष्ठ:वोल्गा से गंगा.pdf/१७१

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१७० वोलासे गंगा ही विचारकोंके दिमागम यह ख्याल बैठ गया कि जब तक पार्शचोंके सुकाविलेमे हुम भी एक बक्का राज्य नहीं कायम कर लेते तब तक निस्तार नहीं । फिलिप कभी सफल न होता, यदि एथेन्सले उत्ते सहायता न मिली होती । "आई, तक्षशिला ! ने भी विष्णुगुप्तको पैदा किया | तक्षशिला, विष्णुगुप्त क्या हैं नाग | अभिमानिनी तक्षशिला, मेरी जन्मभूमि, पूर्वको एथेन्स । हमारे गणने भी महान दारयोश और उसके उत्तराधिकारियोंको कई बार मार भगाथा, किन्तु मेरा सहपाठी विष्णुगुप्त अत्र वहीं बात कह रहा है, जिसे फिलिपूको सहायता पहुँचानेवाले एथेन्सचे नागरिकोंने कहा था ।”

    • क्या तक्षशिला भी हमारे एथेन्सकी भाँति ही गया है ?

"हाँ, गण है । और हमारी तक्षशिलामें कोई दास नहीं, उसकी भूमि पर पैर रखते ही दास अदास हो जाते हैं । आह, करुणामयी तक्षशिला ! तभी नाग | मैंने पहले दिन ही देखा, दासके साथ वर्तनका तुम्हें ढंग नहीं मालूम है । और मैं कभी मालूम नहीं होने दूंगा । मैंने विष्णुगुप्तको कहा, यदि तुम मागको लाओगे, तो तक्षशिलाकी पवित्र भूमि पर दासताको कलंक लगे बिना नहीं रहेगा । मागध कौन हैं नाग ! “हिन्दके फिलिप् , तक्षशिलासे पूर्व एक विशाल हिन्दू-राज्य । पार्शवोंके आक्रमणसे हम तंग आ गये हैं, जीतते-बीतते भी हम निर्बल और शुरेसे हो गये हैं। वस्तुतः अकेली तक्षशिला पार्शव शाहंशाहसे मुकाबिला नहीं कर सकती, किन्तु मैं इसकी दवा अपने अनेक गणकै संघको बतलाता हूँ ।” किन्तु, नाग ! हमारे देशमें यह भी करके देख लिया गया। हमारी हैल्ला जातिके कितने ही गणोंने संघ वाँधकर पार्शवका मुकाविला किया, किन्तु वह संध स्थायी नहीं हो सका। गणमैं अपने-अपने गएकी स्वतं