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नागदत्त १६६ "तुम कैसे दासी हुई, सोफी ! यदि कष्ट न हो तो बताओ ।”

  • मेरे पिता एथेन्स नगरीके एक प्रमुख नागरिक थे। जब मकदूनियाके राजा फिलिप्ने हमारी नगरीको विजय किया, तो पिता, परिवार के व्यक्तियोंको ले नावसे एशिया भाग आए । हमने समझा था कि यहाँ हमे शरण मिलेगी किन्तु जिस नगरीमें हम उतरे, चन्द महीने बाद ही पार्शवोंने उसपर आक्रमण कर दिया। नगरका पतन हुआ, और उस भगदड़में कोई कहीं गया, कोई कहीं गया, कितने नागरिकों को पार्शवोंने बंदी बनाया, मैं भी उन्हीं बंदियोंमें थी, और अच्छे रूप और तरुणाईके कारण मुझे सेनापति के पास भेजा गया, सेनापतिसे शाह पास । शाहके पास मेरी जैसी.सैकड़ों यवन तरुणियाँ थीं, उसने अपनी बहिनको आते सुन, मुझे उसके पास भेज दिया । यद्यपि मैं दासी थी, किन्तु अपने रूपके कारण खास स्थान रखनेवाली दासी थी, इसलिये मेरा अनुभव साधारण दासियोंका नहीं हो सकता, तो भी मै ही जानती हूँ इस यातनाको । मुझे जान पड़ता था, कि मै मानवी ही नहीं हैं।"

“तो सोफ़ी ! तुम्हारे पितासे फिर भेंट नहीं हो सकी है। “मुझे विश्वास नहीं कि वह जिन्दा बचे होंगे। अव तो हम हवामे उड़ते सूखे पत्त है। प्यारी एथेन्स बर्बाद हो गई, अब जीवित होने पर भी मिलनेको ठाँव कहाँ रहा १ एयेन्स महानगरी है सोफिया १ **थी कभी स्वामी ! *स्वामी नहीं, नाग कहो, सोफी । थी कभी नाग । किन्तु अव तो वह उजड़ चुकी है, इमारी गण जिसने महान् दारयोश् के दाँत खट्ट किये, उसे क्षुद्र फिलिप्ने आनत शिर कर दिया ।। “क्यों ऐसा हुआ, सोफी ! "पार्शवोंके अनेक आक्रमणका प्रतीकार करके भी एथेन्सके कितने