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बंधुल मल्ल

"बस इतना ही।”
"मित्र ! मल्लोंके साथ जो सम्बन्ध हमारा है, बस मैं उतना ही कायम रखना चाहता हूँ। तू जानता है कि मुझे राज्य विस्तारकी इच्छा नहीं है। यदि किसी कारणसे मुझे मल्लोंका विरोध करना पड़ा, तो तुझे स्वतन्त्रता होगी चाहे जो पक्ष ले। और कुछ मै अपने प्रिय मित्रके लिये कर सकता हूँ ?"
“नहीं, महाराज ! बस इतना ही।”

( ४ )

बंधुल मल्ल कोसल-सेनापति था। प्रसेनजित् जैसे नरम, उत्साहहीन राजाके लिये एक ऐसे योग्य सेनापतिकी बड़ी ज़रूरत थी। वस्तुतः यदि उसे बंधुल मल्ल न मिला होता, तो शायद मगधों और वत्सोने उसके राज्यके कितने ही भाग दाव लिये होते।

श्रावस्ती पहुँचनेके कुछ समय बाद मल्लिकाको गर्भ-लक्षण दिखलाई देने लगा। बधुल मल्लने एक दिन पूछा—
"प्रिये ! किसी चीज़का दोहद हो तो कहना।"
“हाँ, दोहद है प्रियतम ! किन्तु बड़ा दुष्कर ।”
"बंधुल मल्लके लिये दुष्कर नहीं हो सकता, मल्लिके ! वोल क्या दोहद है ?"
"अभिषेक-पुष्करिणीमे नहाना।"
"मलोंकी ?"
"नहीं, वैशालीमें लिच्छवियों की।”
“तूने ठीक कहा मल्लिके ! तेरा दोहद दुष्कर है। किंतु वंधुल मल्ल उसे पूरा करेगा। कल सवेरे तैयार हो जा, रथपर हम दोनो चलेंगे।"

दूसरे दिन पाथेय ले अपने खङ्ग, धनुष आदिके साथ दोनों रथपर सवार हुये।

दूरकी मंज़िलको अनेक सप्ताहमें पारकर एक दिन बंधुलका रथ वैशालीमे उसी द्वारसे प्रविष्ट हुआ, जिसपर उसका सहपाठी— कुछ