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बघुल मल्ल

रोज मल्लनै कहा— "भन्ते गण ! सुनै । मैं आयुष्मान् बंधुलकी योग्यताके बारेमे सन्देह नहीं रखता। मैं उसके उप-सेनापति बनाये जानैका ख़ास कारण से विरोध करना चाहता हूँ। हुमारे गणका नियम रहा है कि किसीको उच्च पद देते वक्त उसकी परीक्षा ली जाती रही है। मै समझता हूँ आयुष्मान् वधुल पर भी वह नियम लागू होना चाहिये।”
रोज मल्लके बैठ जानेपर दो तीन दूसरे सदस्योंने भी यही बात कही। कुछ सदस्योंने परीक्षाकी आवश्यकता नहीं है, इस बात पर जोर दिया। अन्तम गणपतिने कहा—
“भन्ते गण ! सुनै । गणका आयुष्मान बंधुलके उप-सेनापति बनाये जानेमे थोड़ासा मतभेद है, इसलिये छन्द ( वोट ) लेनेकी ज़रूरत है। शलाका ग्राहक ( शलाका बाटने वाले ) छन्द शलाकाओं ( वोटकी काष्ठमय तीलियो ) को लेकर आपके पास जा रहे हैं। उनके एक हाथ की डलियाम लाल शलाकये हैं, दूसरीमें काली। लाल शलाका 'हा' के लिये है, काली 'नहीं' के लिये जो आयुष्मान् आयुष्मान् रोजके मतके साथ हों, मूल ज्ञप्ति ( प्रस्ताव ) को स्वीकार नहीं करते, वह काली शलाका ले, जो मूल शप्तिको स्वीकार करते हैं, वह लालको।”

शलाका-ग्राहक छन्द शलाकाओको लेकर एक-एक सदस्यके पास गये। सबने अपनी इच्छानुसार एक-एक शलाका ली। लौट आने पर गणपतिने बाकी बची शलाकाओको गिना। लाल शलाकाये ज़्यादा थी, काली कम, जिसका अर्थ हुआ काली शलाकाओंको लोगोंने ज्यादा लिया। गणपतिने घोषित किया—
'भन्ते गण ! सुनै। काली छन्द शलाकाये ज़्यादा उठाई गई, इसलिये मैं धारण करता हूँ कि गण आयुष्मान् रोज मल्लसे सहमत है। अब गण निश्चय करे, कि आयुष्मान् बंधुलसे किस तरहकी परीक्षा ली जाये।"

कितने ही समयके वाद-विवाद तथा छन्द शलाका उठवानेके बाद