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वोल्गासे गंगा

( २ )

कुसीनाराके संस्थागार ( प्रजातंत्र-भवन ) में आज बड़ी भीड़ थी। गण-संस्था ( पार्लामेंट ) के सारे सदस्य शालाके भीतर बैठे हुये थे। कितने ही दर्शक और दर्शिकायें शालाके बाहर मैदान में खड़े थे। शालाके एक सिरेपर एक विशेष स्थानपर गणपति बैठे थे। उन्होंने सदस्योंकी ओर गौरसे देख, खड़ी होकर कहा—

"भन्ते ( पूज्य ) गण ! सुनै, आज जिस कामके लिये हमारा यह सन्निपात ( बैठक ) हुआ है, उसे गणको बतलाता हूँ। आयुष्मान बंधुल तक्षशिलासे युद्ध शिक्षा प्राप्तकर मल्लोंके गौरवको बढ़ाते हुये लौटा है। उसके शस्त्र नैपुण्यको कुसीनारासे बाहर के लोग भी जानते हैं। उसे यहाँ आये चार साल हो गये। मैंने गणके छोटे-मोटे कामको अपनी सम्मतिसे उसे दिया, और हर कामको उसने बहुत तत्परता और सफलताके साथ पूरा किया। अब गणको उसे एक स्थायी पद उप-सेनापतिका पद-देना है यह ज्ञप्ति प्रस्ताव सूचना है।"

"भन्ते गण ! सुनै । गण आयुष्मान् बंधुलको उप-सेनापतिका पद दे रहा है, जिस आयुष्मान् को यह स्वीकार हो वह चुप रहै, जिसे स्वीकार न हो वह बोले।"

"दूसरी बार भी, भन्ते गण ! सुनै ! गण आयुष्मान् बंधुलको उप सेनापतिका पद दे रहा है, जिस आयुष्मान् को यह स्वीकार हो वह चुप रहे, जिसे स्वीकार न हो वह बोले।"

"तीसरी बार भी, भन्ते गण ! सुनै । गण आयुष्मान बंधुलको उपसेनापति पद दे रहा है, जिस आयुष्मान् को यह स्वीकार हो, वह चुप रहै, जिसे स्वीकार न हो, वह बोले।"

इसी वक्त एक सदस्य–रोज मल्ल-उत्तरासंग (चादर) को हटा दाहिना कंधा नंगा रख कान्हासोतीकर खड़ा हो गया। गणपति ने कहा—

"आयुष्मान् कुछ बोलना चाहता है, अच्छा बोल।”