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निशा


दिखलाई। आज उन्हें एक छोड़ दो को देना पड़ा। अभी शिकारों के लौटने मे दो महीने हैं,इस बीच में देखें और कितनो को देना होता है। तीन भालू और एक मेड़िये मे तो उनका, जाड़ा नही कट सकता । बच्चे बड़े खुश थे, वेचारे खाली पेट लेटे हुए थे। माने पहले उन्हें मेड़िये की कलेजी काट-काट कर दी। लड़के हप्-हृप् कर खा रहे थे । चमड़े को विना नुकसान पहुँचाये उतारा । चमड़े का बड़ा काम है। मास काटकर जब दिया जाने लगा, बहुत भूखो ने तो कुछ कच्चा ही खाया, फिर सबने आग के अंगार पर भून-भूनकर खाना शुरू किया। अपने भूने टुकड़ों में से एक गाल काटने के लिए मा की सभी खुशामद- कर रहे थे। माने कहा- 'वस, आज पेट भर खा, कल से इतना नहीं मिलेगा ।" मा उठकर गुहा के एक कोने में गई, वहाँ से चमड़े की फूली हुई झिल्ली को लाकर कहा- 'बस, यही मधु-सुरा है, आज पीयो, नाचो, क्रीड़ा करो ।"

छोटो को झिल्ली से घूँट-घूँट करके पीने को मिला, बड़ो को ज़्यादा ज्यादा। नशा चढ़ आया। आँखें लाल हो। हँसी का फिर ठहाका शुरू हुआ। किसी ने गाना गाया। बड़े पुरुष ने लकड़ी से लकड़ी बजानी शुरू की, लोग नाचने लगे । आज वत्तुतः आनन्द की रात थी। मा का राज्य था, किन्तु वह अन्याय और असमानता का राज्य नही था। बूढ़ी दादी और बड़े पुरुष को छोड़ बाकी सभी मा की सन्ताने थीं; और चूढी के ही बड़ा पुरुष तथा मा बेटा-बेटी थे, इसलिए वहाँ मेरा- तेरा का प्रश्न नहीं हो सकता था। वस्तुतः मेरा-तेराका युग ने भी देर थी। किन्तु हाँ, मा को सभी पुरुषों पर समान और प्रथम अधिकार था। चौबी से पुत्र और पति कें चले जाने से उसे अफसोस न हुआ हो यह बात नहीं, किन्तु उस समय का जीवन से अधिक वर्त्तमान-विद्यमान की फिक्र करता था। माके दो पति मौजूद थे, तीसरा -चौदह साला तैयार हो रहा था। उसके राज्य के रहते-रहते बच्चों में से