पृष्ठ:वोल्गा से गंगा.pdf/१२१

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१२० वोल्गासे गंगा मुझे याद नहीं, प्रवाहण ! मेरे लिए इतना ही याद आना बहुत है कि मैने तेरे कोमल हाथका स्पर्श अपने कन्धेपर अनुभव किया ।' और तु सोचके मारे गोल-मटोल हो गई । 'तूने मेरे हाथको अपने हाथोंमें लिया; किन्तु तेरे ओठ सिले-से रहे, तब माने क्या कहा है। 'भाभीकी एक-एक बात मुझे याद है । माभीको क्या भूल सकता हूं १ माँ मुझे गायें मामाके पास छोड़कर घर लौट गई; किन्तु मामीकै प्रेमने मुझे माँको भुला दिया है मामीको मै कैसे भूल सकता हूं।" प्रवाहण के नेत्रोंमे आँसू भर आए। उसने लोपाके ठोंको चूमकर कहा-मामीका मुँह ऐसा ही था, लोपा ! हम दोनों साथ सोए रहते । तेरी तो नहीं, मेरी आँखें कितनी ही बार खुली रहतीं; किन्तु जब मैं मामीको आते देखता, तो आँखों बन्द कर लेता है। फिर मन्द निःश्वासके साथ उनके ओठोंके स्पर्शको अपने गालोंपर पाता | मैं आँखे खोल देता । मामी बोलत-वत्स, जागो ! फिर वह तेरे मुंहको चूमती; किन्तु तू बेसुध सोती रहती है । लोपाकी आँखोंमें भी अति थे। उसने उदास होकर कहा-'माँको मैं इतना कम देख सकी ! 'हाँ, तो उस समय मुझे तेरे पास मूक खड़ा देख मामीने कहायह तेरी बहन है, वत्स ! इसके अोठोंको चूम और कह कि आ, घोड़ाघोड़ा खेले । । 'हाँ, तो तूने मेरे ओठको चूमा और फिर घोड़ा-धड़ा खेलने लिए कहा। मैंने माँके केशोंसे अपने मुंहको बाहर किया । वहाँ घोड़ा बन गया। मैं तेरी पीठपर चढ़ गई ।। और मैं उसी वक तुझे बाहर ले गया । मैं कितनी घृष्ट थी । "तू सदा निडर थी, लोपा ! और मेरे लिए तो तू सब कुछ थी ।