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१०६ बौलासे गंगा • तैरना भारी व्यायाम है। यह शरीरको बलिष्ट और सुन्दर बनाता है। किन्तु तेरे सौन्दर्यमें क्या वृद्धि होगी, अपालै ! तू तो अभी भी तीनों लोकोंकी अनुपम सुन्दरी है। ‘अपनी आँखोंसे कहता है न सुदरू ? किन्तु मोहसे नहीं अमाले ! तु यह जानती है । ही, तूने चुम्बन तक कभी मुझसे नहीं माँगा, यद्यपि मद्र-तरुणियाँ उसके वितरणमें बहुत उदार होती हैं ।। "विना माँगे भी तो तूने उसे देनेकी उदारता की है।

  • किन्तु उस वक्त, जबकि मै तुझमें मैया श्वेतवाको देखा करती थी ।

और अब क्या न देगी । 'माँगनेपर चुम्बन क्यों न देंगी है। 'और माँगनेपर तू मेरी'यह मत कह. सुदास् ! इन्कार करके मुझे तुःख होगा।' 'किन्तु उस दुःखको न आने देना तेरे हाथमें है ? मेरे नहीं, तेरे हाथमें है।' क्या तू सदाके लिए मेरे पिताकै घरमें रहनेके लिए तैयार हैं । सुदाको कितनी ही बार उन कोमल ओठोंसे इन कठोर अक्षरोंकै. निकलनेको डर था, आज अशनि( विजली की भाँति एकाएक वह उसके कानोंको छैदकर हृदयपर पड़े। कुछ देरके लिए उसका चित्त उदिम होगया; किन्तु वह नहीं चाहता था कि अपीला उसके नम हुदयको दैखे । क्षण-भरके बाद उसने वरपर संयम करके कहातुझे कितना प्रेम करता हूँ अपाले १।। 'यह मैं जानती हैं, और मेरी भी बात तुझे मालूम है। मैं सदाकै लिए तेरी बनना चाहती हैं। पिता भी इससे प्रसन्न होंगे; किन्तु फिर तुझे पंचालिसे मुँह मोड़ना होगा।