पृष्ठ:वोल्गा से गंगा.pdf/१०४

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सुदास् सुदा अपने भीतर नई स्फूर्ति आती देख रहा था, और शामको काम छोइनेसे पहले गैहुँ काटनेमें वह किसीसे कम न था। रातको लोग वहाँसे दूर खलिहान-धरौके पास गए । जैताकी खेती बड़ी थी, यह खलिहानमें रातको जमा हुए दो सौसे ऊपर कसकर बतला रहे थे । खलिहानके घरोंमें खानाबनानेवाले अपने काममें लगे हुए थे। एक भारी बैल मारा गया था, जिसकी इदियों, अंतड़ियों और कुछ मासको बड़े-बड़े देगमें तीन घंटा दिन रहते ही चढ़ा दिया गया था। बाकी आध-आध सेरके टुकड़े अलग नमकके साथ उबाले जा रहे थे। घरोंके बाहर एक भारी चिकना मैदान खलिहानके लिए था, जिसकी एक ओर एक पक्का कुआँ तथा पानीसे भरा कुण्ड था। स्त्री-पुरुषोंने कुण्डपर जाकर हाथ-मुँह धोए। जिन्हें शरीर धोनेकी इच्छा थी, उन्होंने शरीर भी धोया। अँधेरा होतेके साथ पौतीसे बैकै स्त्री-पुरुषोंके सामने रोटी, मास-खंड और सुरा-भाँड़ रखे गए । सुदासुकी लज्जाका ख़याल कर अपाला-पानी लाने वाली–ने उसे अपने पास बैठाया, यद्यपि इसमें उसकी लजाका उतना ख़याल न था, जितना कि परदेश गए भाई की स्मृतिका । भोजन-पानकै बाद गान-नृत्य शुरू हुआ, जिसमें यद्यपि सुदास् आज सम्मिलित नहीं हो सका; किन्तु आगे चलकर वह सर्वप्रिय गायक और नर्तक बना । । खेतकी कटाई, ढोलाई और देंवाई डेढ़ महीने तक चलती रही, किन्तु दो सप्ताह बीतते-बीतते ही सुदा पहचाना नहीं जा सकता था। उसकी बड़ी-बड़ी नीली आंखें उभर आई यौं । उसके गालोंपर स्वाभाविक लाली दौड़ चुकी थी। उसके शरीरकी नसें व हबियाँ पेशियोंसे ढंक गई थीं । जैताने सप्ताह बाद ही उसे नए कपड़े दे दिए थे। | खलिहान करीब-करीव उठ चुका था । छः-सात आदमियोंजिनमें बाप-बेटी और सुदास भी थे—को छोड़ बाकी लोग अपने अनाज को लेकर चले गए थे। इन लोगोंके पास खेत थोड़े थे, इसलिए अपने खेतको काटकर वह जैताके खेतोंमें काम करने आए थे। इन डेढ़ .