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प्रयत्न, गुरुत्व, द्रवत्व।

काम करने को चित्त उत्तेजित होता है इसी उतेजित उत्साहित होने को 'प्रयत्न' कहते हैं।

प्रयत्न दो प्रकार का है—१) जीवनपूर्वक यह प्रयत्न है जिससे सोये हुये आदमी का श्वास पर श्वास चलता है, या जागते हुये आदमी का भी जिस प्रयत्न के द्वारा मन का संयोग इन्द्रियों के साथ हुआ करता है। इस प्रयत्न की उत्पत्ति धर्म अधर्म के द्वारा आत्मा मन के संयोग से होती है। (२) इच्छाद्वेषपूर्वक प्रयत्न वह है जिसके द्वारा इष्ट वस्तु के पाने के लिये और अनिष्ट वस्तु को दूर करने के लिये व्यापार किया जाता है। इसकी उत्पत्ति इच्छा या द्वेष के द्वारा आत्मा मन के संयोग से होती है।

गुरुत्व (१८)

जलीय और पार्थिव पदार्थ जिस गुण के द्वारा ऊपर से नीचे गिरते हैँ उसी गुण को 'गुरुत्व' कहते हैँ। इस गुण का प्रत्यक्ष ज्ञान नहीं होता। कोई वस्तु जब गिरती देख पड़ती है तब इसी गिरने से यह अनुमान किया जाता है कि इसमें गुरुत्व है क्योंकि बिना गुरुत्व के गिरना असम्भव है। संयोग प्रयत्न और वेग से इस गुण का व्यापार रोका जाता है। जैसे मकान की छत पर जब आदमी चढ़ता है तब जो अपने गुरुत्व से वह नीचे नहीं गिर जाता इसका कारण यही है कि उस समय उस आदमी का छत के साथ संयोग है। शरीर खड़ा रहता है इस का कारण शरीर वाले का प्रयत्न ही है। धनुष से जब वाण छूटता है तब बाहर निकलते ही वह नहीं गिर जाता है इसमें कारण उस वाण का वेग ही है। ज्योंही वेग समाप्त होता है त्योंही वाण जमीन पर गिर पड़ता है। पृथिवी और जल, परमाणु के गुरुत्व नित्य हैं ओर स्थूल वस्तुओं में अनित्य हैं। आश्रय विनाश ही से गुरुत्व का विनाश होता है।

द्रवत्व (१९)

जिस गुण के द्वारा वस्तुओं का स्यन्दन, बहना, होता है उसे 'द्रवत्व' कहते हैँ। पृथिवी, जल, अग्नि इन तीन द्रव्यों में द्रव्य रहता है। द्रवत्व दो प्रकार का है—सांसिद्धिक और स्वाभाविक।