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वैशेषिक दर्शन।
[औलूक्य]

वैशेषिक दर्शन के आदि प्रवर्तक ऋषि कणाद हैं। यह 'कणभुक्', 'कणभक्ष' इत्यादि नामों से भी ग्रंथों में प्रसिद्ध हैं। त्रिकाण्डशेष कोष में इन का नाम 'काश्यप' भी कहा है। कणाद कश्यप के पुत्र थे ऐसा किरणावली में लिखा है। एक नाम इन का 'औलूक्य' भी है। इस से इन को लोग उलूक ऋषि का पुत्र बतलाते हैं। ये उलूक मुनि विश्वामित्र के पुत्र थे यह महाभारत अनुशासन पर्व ४ अध्याय में लिखा है। वायु पुराण, पूर्वखण्ड, २३ अध्याय में कणाद के प्रसङ्ग में लिखा है कि वे सत्ताइसवीं चौयुगी में प्रभास क्षेत्र में शिव जी के अवतार सोमशर्मा नाम ब्राह्मण के शिष्य थे। इस से ऐसा मालूम होता है कि कश्यप गोत्र में, विश्वामित्र के पुत्र उलूक के पुत्र, सोमशर्मा के शिष्य कणाद रहे। इन के सूत्र 'कणाद सूत्र', 'वैशेषिक दर्शन' इत्यादि नाम से प्रसिद्ध हैं। जैसे एक एक सूत्र की टीका रूप से 'भाष्य' और सूत्रों के हैं वैसा भाष्य वैशेषिक सूत्रों का कोई अब तक उपलब्ध नहीं है। प्रशस्त पाद की टीका 'भाष्य' कर के प्रसिद्ध है। पर इस ग्रन्थ के देखने से मालूम होता है कि यह सूत्रों की टीका नहीं है। सूत्रों के क्रम तक को इस में नहीं स्वीकार किया है। सूत्रों के आधार पर यह एक स्वतंत्र ही ग्रन्थ है। इस को 'भाष्य' कहना ठीक नहीं। पर सूत्रों को छोड़ कर यही ग्रन्थ वैशेषिक विषय पर सब से प्राचीन अब तक मिला है इस से इस को लोगों ने 'भाष्य' मान लिया है। प्रशस्तपाद ने अपने ग्रन्थ का नाम भी 'भाष्य' नहीं रक्खा-इस कानाम 'पदार्थधर्मसंग्रह' प्रथम श्लोक में कहा है। इस पर टीका जो 'न्यायकन्दली' नाम से प्रसिद्ध है उस में कहीं 'भाष्य' नाम से इस ग्रन्थ को नहीं कहा है। न्यायकन्दली की केवल एक पुस्तक पाई गई है जिस में मूलग्रन्थ को 'भाष्य' कहा है। फिर प्रशस्तपाद के ग्रन्थ की टीका-किरणावली-में लिखा है कि प्रशस्तपाद ने इस पदार्थधर्मसंग्रह को लिखा––'क्योंकि