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वैशेषिक दर्शन।

लेही रहेगा और जो पीछे होगया वह पीछे। यह काल द्वारा आगे पीछे का सम्बन्ध सदा एकसा बना रहता है। दैशिक सम्बन्ध ऐसा नहीं होता। चार चीजें एक जगह रक्खी है, उनमें पूर्व पश्चिम दक्षिण उत्तर का सम्बन्ध अभी एक तरह का है। उनके स्थान को उलट फेर कर देने से जो पूर्व था वह पश्चिम होजायगा जो दक्षिण था वह उत्तर॥

संख्या परिमाण पृथक्त्व संयोग विभाग देश के गुण हैं। यह भी विभु और परम महान् और नित्य है। इसका भी प्रत्यक्ष नहीं केवल अनुमान होता है। यद्यपि देश एकही है तथापि महर्षियों ने मेरु को केन्द्र मानकर उसके चारों ओर सूर्य के भ्रमण द्वारा दिशा के दश भेद माने हैं। और उनके नामभी सूर्यकी गति के अनुसार रक्खे हैं। जिधर सूर्य सबसे पहिले देख पड़ता है [प्रथम अंचति] उसका नाम है 'प्राची,' (पूर्व) जिधर सूर्य नीचे जाता है वह अवाची, (दक्षिण) इत्यादि।

आकाश और दिक् इन दोनों को अलग मानने के कई कारण हैं। आकाश केवल शब्द का समवायि कारण है। दिक् किसी वस्तु का समवायि कारण नहीं है। परन्तु सब कार्य्यों का निमित्त कारण है। आकाश का उसके शब्द गुण द्वारा प्रत्यक्ष ज्ञान भी माना जा सकता है दिक् का उसके कार्य्यों के द्वारा केवल अनुमान ही होता है।

आत्मा

आठवाँ द्रव्य आत्मा है। जिसमें ज्ञान उत्पन्न होता है, जो ज्ञान का समवायि कारण होता है—वही आत्मा है। काणादरहस्य में आत्मा को ज्ञान का अधिकरण कहा है। परन्तु यहां अधिकरण पद का समवायि कारण ही अर्थ है। आत्मा प्रत्यक्ष नहीं होता—क्योंकि यह अमूर्त पदार्थ है। मूर्त पदार्थ ही का प्रत्यक्ष हो सकता है। कई नैयायिकों ने इसको प्रत्यक्ष माना है। परंतु वैशेषिक मत में आत्मा का अनुमान ही हो सकता है। किसी हथियार का व्यापार बिना कर्ता के नहीं होता—इन्द्रियां एक प्रकार के हथियार हैं—इससे इनके व्यापार का कोई कर्ता अवश्य होगा—यही कर्ता आत्मा है। फिर श्वास, प्रश्वास, निमेष, उन्मेष, सुख- दुःख,