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वायु।

तेज की तरह यह आँख से देखी नहीं जाती। सूत्र के अनुसार वायु का प्रत्यक्ष नहीं होता। क्योंकि इस में रूप नहीं है (सूत्र ४१,७) भाष्य के भी मत में वायु का प्रत्यक्ष नहीं है (पृ॰ ४४)। यद्यपि वायु के स्पर्श का प्रत्यक्ष होता है तथापि इस को वायु का प्रत्यक्ष नहीं कह सकते। क्योंकि स्पर्श का केवल ज्ञान होता है स्पर्शवान् द्रव्य का प्रत्यक्ष नहीं होता। अर्थात् जैसे रूपवाली वस्तु में रूप रूपी दोनों का प्रत्यक्ष होता है, पीला फल और पीला रंग दोनों देख पड़ते हैं, वैसे स्पर्श और स्पर्शवाले वायु का प्रत्यक्ष नहीं होता है। केवल स्पर्श का ज्ञान होता है। स्पर्श एक गुण है। इसका आधार कोई द्रव्य अवश्य होगा। इसी से अनुष्ण अशीत स्पर्श के आधार वायु का अनुमान ही होता है। इस में वायु के गुण का प्रत्यक्ष है और वायु का अनुमान ही होता है ऐसा नैयायिकों का सिद्धान्त है। काणाद रहस्य में शंकर मिश्र और तर्कसंग्रह में अन्नम्भट्ट ने भी ऐसा ही माना है। परंतु नवीन नैयायिक वायु का प्रत्यक्ष भी मानते हैं।

वायु भी अणु कार्य रूप से दो प्रकार का है। कार्य रूप वायु चार प्रकार के हैं। (१) शरीर वायु, लोक के जीवों का है। (२) इन्द्रिय—जिस इन्द्रिय से स्पर्श का ज्ञान होता है वह त्वगिन्द्रिय वायु ही से बनी है और शरीर में सर्वत्र रहती है। (३) विषय जिस को हम लोग हवा कहते हैं, जिसके द्वारा वृक्ष हिलते हैं, बादल इधर उधर उड़ते हैं, जिसका अनुमान स्पर्श, शब्द, कम्प इत्यादि से होता है। वायु नाना है इस में यही प्रमाण है कि अकसर देखा गया है कि दो तरफ से हवा जोर से बहती है तो बीच में मिल कर दोनों की तेजी कट जाती है जिसे 'हवा गिर गई' ऐसा कहते हैं। और ऐसे विरुद्ध वायु वेग की टक्कर से धूल के या सूखी पत्तियों के चक्कर ऊपर उठते नजर आते हैं। (४) प्राण भी वायु का विषय है। यही शरीर के भीतर रस, मल, धातुओं का इधर उधर चालन करता है। यद्यपि यह है एक ही तथापि नाना कार्य करने के कारण से पांच माना गया है। जैसे मूत्रादि जिस वायु के द्वारा बाहर निकलता है उसे 'अपान' कहते हैं। जिस के द्वारा रस नाड़ियों में फैलता है उस को 'व्यान' कहते हैं। अन्न पानी जिस के द्वारा ऊपर आते हैं वह 'उदान' कहलाता है। जिस