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तेजस्।

साफ साफ नहीं मालूम होता, पर जब हर्रे या आँवला खाकर पानी पीया जाता है तो मीठापन साफ मालूम होता है। स्पर्श इस का शीत है। जब तक बाहर से गरमी न लगाई जाय तब तक पानी ठंढा ही मालूम होता है। स्वाभाविक द्रवत्व–अर्थात् बिना बाहर से गरमी लगाये हुये भी बहना–यह गुण केवल जल ही में है। और जितनी चीजें हैं वे गल कर तभी बह सकती हैं जब गरमी लगाई जाय। जल में ऐसा नहीं है, वह स्वयं बहता ही रहता है। स्नेह–चिकनाहट–भी जल ही का गुण है, बगैर जल के चिकनाहट नहीं होती।

परमाणु और कार्य—इन्हीं दो रूप में जल भी पाया जाता है। परमाणु नित्य है, कार्य अनित्य। शरीर इन्द्रिय विषय कार्यरूप जल के भी हैं। जलीय शरीर वरुण लोक में पाए जाते हैं। इन शरीरों में केवल जल ही रहता है ऐसा नहीं। मुख्य द्रव्य इन में जल रहता है, जैसे हम लोगों के शरीर में केवल पृथिवी नहीं है, पांचों भूत हैं तथापि ये पार्थिव कहलाते हैं क्योंकि प्रधान द्रव्य इन में पृथिवी है। जलीय इन्द्रिय है जिह्वा। विषय है नदी समुद्र बरफ़ इत्यादि।

तेजस् (अग्नि)।

उष्ण (गरम) स्पर्श जिस में है वही तेजस् या अग्नि है। गरमी केवल तेज ही में है (सूत्र २.२.४)। तेज के गुण सूत्र में (२.१.३) रूप और स्पर्श दो ही कहे हैं। पर भाष्य में इनके अतिरिक्त विशेष गुण संख्या परिमाण पृथक्त्व संयोग वियोग परत्व अपरत्व द्रवत्व संस्कार भी कहे हैं (पृ॰ ३८)। इसका रूप शुद्ध भास्वर—सफ़ेद चमकीला है। स्पर्श गरम है।

तेज भी दो प्रकार का है, परमाणु रूप और कार्यरूप शरीर इन्द्रिय विषय तीन प्रकार के कार्य हैं। तेजस शरीर अयोनिज सूर्यलोक के वासियों का ही है। तेजस इन्द्रिय आँख है। इससे केवल रूप का ग्रहण होता है। तेजस विषय चार प्रकार के हैं। भौम (भूमि सम्बन्धी) जैसे लकड़ी कोयले के जलाने से उत्पन्न आग; दिव्य—जैसे सूर्य नक्षत्रादि विद्युत् के तेज; उदर्य–प्राणियों के उदर सम्बन्धी–जैसे पेट की आग जिस से आहार का पाक होता है; आकरज–खान से उत्पन्न–जैसे