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वैशेषिक दर्शन।

बना है इस में सबूत यही है कि गुणों में गंध ही का ग्रहण इससे होता है और गंध गुण केवल पृथिवी में है।

पृथिवी के विषय मिट्टी, पत्थर, वृक्ष इत्यादि हैं। यद्यपि शरीर और इन्द्रिय का भी ज्ञान होता है—इससे ये भी 'विषय' कहला सकते हैं—पर जिस शरीर में या जिस इन्द्रिय के द्वारा आत्मा में ज्ञान होता है वह शरीर या इन्द्रिय उस आत्मा के ज्ञान का विषय नहीं होता। इसीसे शरीर और इन्द्रिय को 'विषय' से अलग कहा है। न्यायकन्दली (पृ॰ ३२) में शरीर और इन्द्रिय के अतिरिक्त जो आत्मा के उपभोग के साधन होते हैं उन्हीं को विषय कहा है। आत्मा के भोग–सुख दुःख–में जिनका उपयोग होता है अर्थात् जिनका ज्ञान होता है, जिन के पाने न पाने से आत्मा को सुख दुःख होता है, वे ही विषय हैं।

वृक्षों को प्रशस्तपाद ने 'विषय' माना है। कुछ लोगों का मत है कि इन में चेष्टा होती है, इस से वृक्षों को 'शरीर' कहना उचित है। ऐसा मत विश्वनाथ का है। पर शंकर मिश्र (उपस्कार में) कहते हैं कि इन में चेष्टा है इस का दृढ़ प्रमाण नहीं मिलता है, इससे यद्यपि इन में शरीरत्व हो भी तथापि इनको 'शरीर' कहना ठीक नहीं।

जल।

शीत स्पर्श जिस द्रव्य में है वही जल है [सूत्र २.२.५]। जल के गुण [सूत्र २.१.२ में] रूप रस स्पर्श द्रवत्व और स्नेह कहे हैं। पर भाष्य में उन के अतिरिक्त संख्या, परिमाण, पृथक्त्व, संयोग, विभाग, परत्व, अपरत्व, गुरुत्व, संस्कार भी कहे हैं (पृ॰ ३५)। जल का रूप शुक्ल है। जब जल में दूसरा रंग देख पड़ता है तब वह रंग जल में मिली हुई किसी दूसरी चीज का है। जैसे लाल स्याही में से अगर लाल बुकंनी अलग कर दी जाय तो खाली पानी का रंग सफेद रह जायगा। जल का रस मीठा है। छः तरह के रस होते हैं। कड़ुआ, तीता, मीठा, खट्टा, लवण, कषाय। इन में से मीठा छोड़ कर और कोई भी रस पानी में नहीं पाया जाता। वैसे तो मीठापन भी