आंखें उठाकर देखा, उनके होंठ कम्पित हुए, उन्होंने दोनों हाथों से आंखों की धुंध पोंछी, फिर अस्फुट स्वर से आप-ही-आप कहा—"कौन तुम, सोम...वही हो, वही, पहचानती हूं मेरे बच्चे!" और वे उसी प्रकार युवक की ओर दौड़ीं जैसे गाय बछड़े की ओर दौड़ती है। उन्होंने युवक को छाती से लगा लिया। उनकी आंखों से अविरल अश्रुधारा बह चली।
सोमप्रभ हतप्रभ होकर विमूढ़ हो गए। एक अचिन्तनीय आनन्द ने उनके नेत्रों को भी प्लावित कर दिया। उन्होंने प्रकृतिस्थ होकर कहा—
"आर्या मातंगी, अकिञ्चन सोम आपका अभिवादन करता है।"
"नहीं, नहीं, आर्या मातंगी नहीं, मां कहो वत्स!"
सोमप्रभ ने अटकते हुए कहा—"किन्तु आर्ये."
"मां कहो वत्स, मां कहो!"
"आर्ये, हतभाग्य सोम अज्ञात-कुलशील अज्ञातकुलगोत्र है। कल्याणी मातंगी उसे इतना गौरव क्यों दे रही हैं?"
"मां कहो प्रिय, मां कहो। जीवन के इस छोर से उस छोर तक मैं यह शब्द सुनने को तरस रही हूं।" मातंगी के स्वर, भावभंगिमा और करुण वाणी से विवश हो अनायास ही बरबस सोम के मुंह से निकल गया—"मां..."
"आप्यायित हो गई मैं, मरकर जी गई मैं, वत्स सोम, अभी और कुछ देर हृदय से लगे रहो। अरे, मैंने 24 वर्ष तुम्हारी प्रतीक्षा की है भद्र!"
"किन्तु आर्ये...?"
"मैं कौन हूं, यही जानना चाहते हो। बच्चे, मैं अभागिनी तुम्हारी मां हूं।"
"आप आर्ये मातंगी! देवपूजित द्विज गोविन्द स्वामी की महाभागा पुत्री देवी मातंगी मुझ भाग्यहीन की मां हैं?"
"निश्चय वत्स, यह ध्रुव सत्य है। क्या आचार्य ने कहा नहीं?"
"नहीं, उन्होंने केवल इतना ही कहा था कि देवी के दर्शन करना अवश्य।"
"अभी मुहूर्त भर पूर्व उन्होंने मुझे संदेश भेजा था, कि तुम्हारा पुत्र आया है। वह तुमसे मिलने आ रहा है। सो सोम, तनिक तुम्हें देखूं। मेरे सामने खड़े तो हो जाओ प्रिय!"
और मातंगी अबोध बालक के समान सोम के सम्पूर्ण शरीर पर हाथ फेरने लगीं।
सोम ने धीरे-धीरे झुककर मस्तक मां के चरणों में टेककर कहा—
"मां, आज मैं सनाथ हुआ। परन्तु मुझे अधिक समय नहीं है, मुझे एक दुरूह यात्रा करनी है। इतना बता दो मेरे पिता कौन हैं?"
"पिता?" मातंगी के होंठ भय से सफेद हो गए और उनका चेहरा पत्थर की भांति भावहीन हो गया। उन्होंने डूबती वाणी से कहा—"पुत्र, उनका नाम लेना निषिद्ध है।"
"क्यों मां?"
"क्या तुमने मेरे आजन्म एकान्तवास को नहीं सुना?"
"सुन चुका हूं आर्ये?"
"तो बस, यही यथेष्ट है।"
"मैं क्या उनके विषय में कुछ भी नहीं जान सकता?"
"क्या जानना चाहते हो वत्स?"