पृष्ठ:वैशाली की नगरवधू.djvu/७३

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बाहर आकर सोम ने कहा—"कुण्डनी, अभी मुझे एक मुहूर्त—भर राजगृह में और काम है।"

"आर्या मातंगी के दर्शन न?"

"हां, क्या तुम जानती हो?"

"जानती हूं।"

"तो तुम कह सकती हो वे कौन हैं?"

"क्या तुम भूल गए सोम, राजनीति में कौतूहलाक्रान्त नहीं होना चाहिए?"

"ओह, मैं बारम्बार भूल करता हूं। पर क्या तुम भी साथ चलोगी?"

"नहीं, वहां प्रत्येक व्यक्ति का जाना निषिद्ध है।"

"तब मैं कैसे जाऊंगा?"

"पिता ने कुछ व्यवस्था कर दी होगी।"

"तब तुम सैनिकों को लेकर दक्षिण तोरण पर मेरी प्रतीक्षा करो और वहीं मैं आर्या मातंगी के दर्शन करके आता हूं।"

दोनों ने दो दिशाओं में अपने अश्व फेरे।

सोम आर्या मातंगी के मठ की ओर तथा कुण्डनी सैनिकों के साथ नगर के दक्षिण तोरण की ओर चल दिए।