अमात्य बड़ी देर तक होंठ चबाते और दोनों हाथों की उंगलियां ऐंठते रहे, फिर एक मर्मभेदिनी दृष्टि युवक पर डालकर कहा—
"हुआ, परन्तु क्या तुम अपने दायित्व को समझने में समर्थ हो?"
"मैं आर्य का अनुगत हूं।"
"क्या कहा तुमने?"
"मैं सोमप्रभ, मगध महामात्य का अनुगत सेवक हूं।"
"और मगध साम्राज्य का भी?"
"अवश्य आर्य, मैं सम्राट् के प्रति भी अपना एकनिष्ठ सेवा-भाव निवेदन करता हूं।"
अमात्य ने घृणा से होंठ सिकोड़कर कहा—"यह तो मैंने नहीं पूछा, परन्तु जब तुमने निवेदन किया है तो पूछता हूं—यदि सम्राट् और साम्राज्य में मतभेद हो तो तुम किसके अनुगत होगे?"
"साम्राज्य का, आर्य!"
अमात्य ने मुस्कराकर कहा—"और यदि अमात्य और साम्राज्य में मतभेद हुआ तब?"
क्षण-भर सोमप्रभ विचलित हुआ, फिर उसने दृढ़ स्वर में, किन्तु विनम्र भाव से कहा—
"साम्राज्य का, आर्य!"
अमात्य की भृकुटी में बल पड़ गए। उन्होंने रूखे स्वर में कहा—
"किन्तु युवक, तुम अज्ञात-कुलशील हो।"
"तो मगध महामात्य मेरी सेवाओं को अमान्य कर सकते हैं और अनुमति दे सकते हैं कि मैं आचार्य बहुलाश्व और आचार्यपाद काश्यप से की गई प्रतिज्ञाओं से मुक्त हो जाऊं।"
"अपने आचार्यों से तुमने क्या प्रतिज्ञाएं की हैं आयुष्मान्?"
"मगध के प्रति एकनिष्ठ रहने की, आर्य!"
"क्यों?"
"क्योंकि मैं मागध हूं। तक्षशिला से चलते समय बहुलाश्व आचार्यपाद ने कहा था कि तुम मगध साम्राज्य के प्रति प्राण देकर भी एकनिष्ठ रहना और आचार्यपाद काश्यप ने कहा था—"महामात्य के आदेश का पालन प्रत्येक मूल्य पर करना।"
"आचार्य ने ऐसा कहा था?" अमात्य ने मुस्कराकर कहा। फिर कुछ ठहरकर धीमे स्वर से बोले—
"यह यथेष्ट है आयुष्मान् कि तुम मागध हो। अच्छा, तो तुम याद रखो—मगध साम्राज्य और मगध अमात्य के तुम एक सेवक हो।"
"निश्चय आर्य!"
"ठीक है, कुण्डनी से तुम परिचित हुए?"
"वह मेरी भगिनी है आर्य!"
"और वयस्य काश्यप ने तुम्हें उसका रक्षक नियत किया है?"
"जी हां आर्य!"
"मैं तुम्हें अभी एक गुरुतर भार देता हूं। तुम्हें इसी क्षण एक जोखिम-भरी और