सामग्री ही यहां क्यों ? उसकी स्मृति भी क्या ?. __ “ इसलिए भगवच्चरण - कमलों में यह सारी सम्पदा , प्रासाद , धनकोष , हाथी , घोड़े, प्यादे, रथ , वस्त्र , भंडार आदि सब समर्पित हैं ! भगवन् ने जो यह भिक्षु का उत्तरीय मुझे प्रदान किया है , मेरे शरीर की लज्जा -निवारण को यथेष्ट है । आज से अम्बपाली तथागत की शरण है । यह इस भिक्षा में प्राप्त पवित्र वस्त्र को प्राण देकर भी सम्मानित करेगी ! " इतना कह अविरल अश्रुधारा से भगवच्चरणों को धोती हुई अम्बपाली अर्हन्त बुद्ध की चरण - रज नेत्रों से लगाकर उठी और धीरे - धीरे प्रासाद से बाहर चली गई । दास - दासी , दण्डधर , कर्णिक , कंचुकी, भिक्षु- सब देखते रह गए । महावीतराग बुद्ध आप्यायित हुए । उनके सम्पूर्ण जीवन में यह त्याग का सर्वोत्कृष्ट उदाहरण था । ___ अम्बपाली, उस पीत परिधान को धारण किए , नीचा सिर किए, पैदल उसी राजमार्ग से भूमि पर दृष्टि दिए धीरे - धीरे नगर से बाहर जा रही थी , जिसमें कभी वह मणि -माणिक्य से जड़ी चलती थी । सहस्रों नगर पौर जनपद उन्मत्त -विमूढ़ हो उसके पीछे पीछे चल दिए । सहस्र- सहस्र कण्ठ से – “ जय अम्बपाली, जय साध्वी अम्बपाली का गगन भेदी नाद उठा और उसके पीछे समस्त नगर उमड़ा जा रहा था । खिड़कियों से पौरवधुएं पुष्प और खील वर्षा कर रही थीं । भगवत् ने कहा - “ आयुष्मान् आनन्द , यह सप्तभूमि प्रासाद भिक्षुकों का सर्वश्रेष्ठ विहार हो । भिक्षु यहां रहकर सम्मार्ग का अन्वेषण करें - यही तथागत की इच्छा है। " इतना कह भगवत् बुद्ध उठकर भिक्षु- संघसहित बाड़ी की ओर चल दिए । महाश्रमण भगवत् बुद्ध अम्बपाली की बाड़ी में आ स्वस्थ हो आसन पर बैठे । तब अम्बपाली केशों को काटकर काषाय पहने मार्ग चलने से फूले -पैरों, धूल - भरे शरीर से दुखी , दुर्मना , अश्रुमुखी पांव -प्यादे, रोती हुई बाड़ी के द्वार कोष्ठक के बाहर आकर खड़ी हो गई । उसके साथ बहुत - सी लिच्छवि स्त्रियां भी हो ली थीं । इस प्रकार द्वार कोष्ठक पर अम्बपाली को श्रान्त दु: खी और अश्रुपूरित खड़ी देख आयुष्मान् आनन्द ने पूछा - “ सुश्री अम्बपाली , अब यहां इस प्रकार तुम्हारे आने का क्या प्रयोजन है? ” " भन्ते आनन्द , मैं भन्ते भगवान् से प्रव्रज्या लेना चाहती हूं। " " तो भगवती अम्बपाली, तुम यहीं ठहरो, मैं भगवान् से अनुज्ञा ले आता हूं। " इतना कह आनन्द अर्हन्त गौतम के पास जा बोले - “ भगवन् , भगवती अम्बपाली फूले पैरों , धूल - भरे शरीर से दुखी , दुर्मना, अश्रुमुखी रोती हुई द्वार - कोष्ठक पर खड़ी है । वह प्रव्रज्या की अनुज्ञा मांगती है । भन्ते भगवन् भगवती अम्बपाली को प्रव्रज्या की अनुज्ञा मिले। उन्हें उपसम्पदा प्रदान हो । " “ नहीं आनन्द, यह सुनकर नहीं कि तथागत के जतलाए धर्म में अम्बपाली घर से बेघर हो प्रव्रज्या ले । "
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