पृष्ठ:वैशाली की नगरवधू.djvu/५१७

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उद्यानों से प्रफुल्लित , देवताओं की नगरी से स्पर्धा करनेवाली वैशाली आज कैसी श्री विहीन हो गई है। " इसी बीच अष्टकुल के लिच्छवि राज - परिजन ने निकट आ अपने - अपने नाम कह भगवन् को अभिवादन किया और एक ओर हटकर बद्धांजलि बैठ गए। उन्हें भगवान् ने धार्मिक कथा द्वारा समदर्षित - समार्दिपत , समुत्तेजित , और सम्प्रहर्षित किया । तथागत के धार्मिकोपदेश द्वारा सम्प्रहर्षित हो ,लिच्छवि -गणपति ने बद्धांजलि हो कहा - “ भन्ते भगवन् , कल का हमारा भात भिक्षुसंघ- सहित ग्रहण करें ! " भगवन् ने मन्दस्मित करके कहा - “ यह तो मैं अम्बपाली का स्वीकार कर चुका । " तब लिच्छवियों ने उंगलियां फोड़ी - “ अरे , अम्बपाली ने हमें जीत लिया ! अम्बपाली ने हमें वंचित कर दिया ! " ____ तब लिच्छविगण भगवान् के भाषण को अभिनन्दित कर, भगवान् को अभिवादन कर, परिक्रमा कर , अनुमोदित कर , आसन से उठ लौट चले, कुछ श्वेत वस्त्र धारण किए थे, कुछ लाल और कुछ आभूषण पहने थे। अम्बपाली रथ में बैठकर लौटी । उसने बड़े- बड़े तरुण राजपुरुष लिच्छवियों के धुरों से धुरा , चक्कों से चक्का , जुए से जुआ टकराया, उनके घोड़ों के बराबर घोड़े दौड़ाए । ___ लिच्छवि राजपुरुषों ने देखकर क्रुद्ध होकर कहा - “ जे अम्बपाली! क्यों दुहर लिच्छवियों के धुरों से धुरा टकराती है ? " " आर्यपुत्रो , मैंने भिक्षुसंघ के सहित भगवान् को भोज के लिए निमन्त्रित किया है। " “ जे अम्बपाली, शत -सहस्र स्वर्ण से इस भात को दे दे। ” । " आर्यपुत्रो , यदि वैशाली जनपद भी दो , तो भी इस महान् भात को नहीं दूंगी । " तब उन लिच्छवियों ने अंगलियां फोड़ीं और अपने हाथ पटककर कहा " अरे , हमें इस अम्बपाली ने जीत लिया ! अरे , हमें अम्बपाली ने वंचित कर दिया ! " __ अम्बपाली ने अपना रथ आगे बढ़ाया और उसके सहस्र घण्टनाद के उद्घोष और उसके पहियों से उड़ी हुई धूल का एक बादल पीछे रह गया । तब अर्हन्त भगवान् पूर्वाह्न समय जानकर पात्र और चीवर ले बारह सौ भिक्षुसंघ- सहित देवी अम्बपाली के आवास की ओर चले । अम्बपाली ने सैकड़ों कारीगर मज़दूर लगाकर रातों - रात सप्तभूमि -प्रासाद का श्रृंगार किया । तोरणों पर ध्वजा - पताकाएं अपनी रंगीन छटा दिखाने लगीं । गवाक्षों के रंगीन स्फटिक सूर्य की किरणों में प्रतिबिम्बित से होने लगे। सिंह- द्वार का नवीन संस्कार हुआ और उसे नवीन पुष्पों से सज्जित किया गया । तथागत अपने अनुगत भिक्षुसंघ के सहित पात्र और चीवर को हाथ में लिए भूमि पर दृष्टि लगाए वैशाली के राजमार्ग पर बढ़े चले जा रहे थे। उस समय वैशाली के प्राण ही राजमार्ग पर आ जूझे थे। अन्तरायण के सेट्ठी, निगम -जेट्ठक अपनी - अपनी हट्टों से उठ -उठकर मार्ग की भूमि को भगवान् के चरण रखने से प्रथम अपने उत्तरीय से झाड़ने लगे । बहुत- से भीड़ में