“ एक गुह्य है पिता , देवी अम्बपाली आर्य अमात्य की पुत्री हैं । " सम्राट ने उन्मत्त की भांति उछलकर सोम को हृदय से लगा लिया। संयत होने पर सोम ने कहा " पिता , चलिए अब, माता का शरीर अरक्षित है। " “ कहां पुत्र " “निकट ही । " दोनों बाहर आए। महाश्मशान में अब भी चिताएं जल रही थीं । दोनों ने आर्या मातंगी को उठाकर गंगा -स्नान कराया । फिर सम्राट ने अपना उत्तरीय अंग से उतार कर देवी के अंग पर लपेट दिया । सोम सूखी लकड़ी बीन लाए और उस पर आर्या मातंगी की महामहिमामयी देहयष्टि रखकर एक चिता की अग्नि से मगध के सम्राट ने आर्या की चिता में दाह दिया । जिसके साक्षी थे सद्य: परिचित माता -पिता का पुत्र और वर्षोन्मुख मेघपुञ्ज। पिता - पुत्र दोनों उसी वृक्ष के नीचे बैठे आर्या मातंगी की जलती चिता को देखते रहे । चिता जल चुकने पर सोम ने खड्ग सम्राट के चरणों में रखकर उनकी प्रदक्षिणा की , फिर अभिवादन करके कहा - “विदा , पूज्य पिता ! " ___ “ यह क्या पुत्र , जाने का अब मेरा काल है, मगध का साम्राज्य तेरा है । " सोमप्रभ ने कहा - “ इसी खड्ग की सौगन्ध खाकर कहता हूं , मगध का भावी सम्राट देवी अम्बपाली का गर्भजात पुत्र होगा। " सोम ने एक बार फिर भूमि में गिरकर सम्राट का अभिवादन किया और जलती हुई चिताओं में होते हुए उसी अभेद्य अन्धकार में लोप हो गए ।
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