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सोम चीत्कार करके मूर्छित हो गए। बहुत देर तक आर्या मातंगी मूर्छित पुत्र को गोद में लिए पड़ी रहीं । उन्होंने पुत्र को होश में लाने का कुछ भी यत्न नहीं किया । एक अवश जड़ता ने उन्हें घेर लिया । धीरे धीरे उनका मुंह सफेद होने लगा । नेत्र पथराने लगे, अंग कांपने लगे । सोम की मूर्छाभंग हुई । उन्होंने आर्या मातंगी की मुद्रा देखकर चिल्लाकर कहा " मां , मां , मां , सावधान हो , मैं कभी अपने को क्षमा नहीं करूंगा। " आर्या ने नेत्र खोले , उनके सूखे रक्तहीन होंठ हिले । सोम ने कान निकट लाकर सुना । आर्या कह रही थीं - “ अम्बपाली तेरी भगिनी है , किन्तु उसके पिता ब्राह्मण वर्षकार... " आर्या के ओष्ठ, हृदय, जीवन सब निस्पन्द हुए !