वज्जी गणतन्त्र अनुशासित हैं । बहुधा हमें इन अलिच्छवियों द्वारा असुविधाएं उठानी पड़ती हैं । अब यदि हम अंग और मगध साम्राज्य को वज्जी - शासन में मिलाते हैं , तो हमारी ये कठिनाइयां असाधारण हो जाएंगी और हमारी गणप्रणाली असफल हो जाएगी । ___ “ यदि आप किसी लिच्छवि जन को वहां का शासक बनाकर भेजेंगे, तो वह प्रजा के लिए और प्रजा उसके लिए पराई होगी । यदि कोई अलिच्छवि जन वहां का शासक बन जाएगा तो फिर दूसरा मगध साम्राज्य तैयार समझना होगा । वह जब प्रभुता और साधन सम्पन्न हो जाएगा तो हम उसे सहज ही हटा नहीं सकेंगे। " “ परन्तु भन्ते , हम इन आए-दिन के आक्रमणों को भी तो नहीं सह सकते? " एक मल्ल राजपुरुष ने कहा । " भन्ते राजप्रमुख , इससे भी गम्भीर बात और है । यदि एक बार भी मगध -सम्राट जीत जाएगा तो वह निस्सन्देह हमारे गणराज्य को नष्ट कर देगा और हमारी गण ही की अलिच्छवि प्रजा समान अधिकार मांगेगी । इसका अभिप्राय स्पष्ट है कि दोनों अधिकार च्युत होंगे और गण -स्थान पर साम्राज्य स्थापित हो जाएगा। ” “ यही सत्य है भन्ते सेनापति , अर्थात् हमारी विजय से उनकी कुछ हानि नहीं है और उनकी एक ही विजय हमें समाप्त कर सकती है। " “ यही तथ्य है भन्ते , राजप्रमुख! " तब तो फिर इस पाप की जड़ को उन्मूलित करना ही आवश्यक है। " “किन्तु कैसे ? हमें कम - से -कम एक लिच्छवि को बिम्बसार अंग - मगध का अधिपति बनाना होगा जो इस श्रेणिक बिम्बसार से अधिक भयंकर होगा । उससे गण लड़ भी तो न सकेगा । " “ क्यों न अंग - मगध को उनकी स्वतन्त्रता फिर दे दी जाए ? " “ यह कठिन नहीं है । पर प्रजा इसे स्वीकार कैसे करेगी ? उसका दायित्व किस पर होगा ? क्या आप समझते हैं मागध गण और आंगगण स्थापित होना सहज है ? " __ “ क्या हानि है! पश्चिम में भी तो बहुत गण हैं । क्यों न हम प्राची में गणसंख्या बढ़ाएं ? इससे कभी - कभी युद्ध भले ही हो , पर उससे गण -नाश का भय नहीं रहेगा। " “ परन्तु आयुष्मान, यह सम्भव नहीं है। हम अंग - मगध की प्रजा को स्वतन्त्रता नहीं दे सकते । अंगराज और मगधराज की स्थापना तो सहज है, पर आंग - गण और मागध - गण की नहीं । " " क्यों भन्ते गणपति ? " " इसलिए आयुष्मान्, कि इसके लिए एक रक्त और एक श्रेणी चाहिए। जहां एकता का भाव हो । मगध में अब ऐसा नहीं है । यद्यपि पहले मागध एक - रक्त थे। परन्तु अब वह इतने दिन साम्राज्यवादी रहकर राष्ट्र बन गया है। अब मागध एक जाति नहीं रही। अब तो वहां के ब्राह्मण, क्षत्रिय , आर्य भी अपने को मागध कहते हैं , मागध का अर्थ है, मागध साम्राज्य का विषय; मागध में ब्राह्मण- क्षत्रिय ही नहीं , मागध शिल्पी , मागध चाण्डाल भी हैं । ये अब असम वर्ग हैं । इनकी अपनी श्रेणियां हैं । ये कभी भी एक नहीं हो सकते । वह श्रेणियों की खिचड़ी है, वहां गणतन्त्र नहीं चल सकेगा। " “ ऐसा है, तब तो नहीं चल सकता। "
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