और देवी अम्बपाली को आयुष्मान् सोमप्रभ के सैनिक मुझे सौंप गए हैं । " " देवी अम्बपाली क्या मागधों की बन्दी हो गई थीं ? " " नहीं आयुष्मान् , वे सम्राट की प्राण -भिक्षा मांगने मागध स्कन्धावार में गई थीं । " “ क्या देवी अम्बपाली ने कुछ कहा ? " " नहीं सिंह, वे तो तभी से मूर्च्छित हैं -मैंने उन्हें आचार्य अग्निवेश के सेवा- शिविर में भेज दिया है। वे उनकी शुश्रूषा कर रहे हैं । " _ “ उनके जीवन -नाश की तो सम्भावना नहीं है भन्ते ? “ ऐसा तो नहीं प्रतीत होता , परन्तु सिंह , तूने आयुष्मान् सोमप्रभ की निष्ठा और महत्ता देखी ? " " देखी भन्ते , सेनापति सोमप्रभ अभिवन्दनीय हैं , अभिनन्दनीय हैं ! " ___ " अरे आयुष्मान्, यह सब कुछ अकल्पित -अद्भुत कृत्य हो गया है। इतिहास के पृष्ठों पर यह अमर रहेगा। " __ “ काप्यक ने दो घड़ी पूर्व सन्देश भेजा था कि महासेनापति आर्य भद्रिक सब ओर से घिर गए हैं । केवल एक दुर्ग पर उन्हें कुछ आशा थी , परन्तु सेनापति सोमप्रभ के सम्पूर्ण मागध सैन्य को युद्ध से विरत -विघटित कर देने से वे निरुपाय हो गए। फिर भी उन्होंने सोमप्रभ का अनुशासन नहीं माना। कल रात - भर और आज अभी तक भी खण्ड - युद्ध करते ही जा रहे हैं । " " अब तो समाप्त ही समझो आयुष्मान् ! " “मैं काप्यक के दूसरे सन्देश की प्रतीक्षा कर रहा हूं । “ सम्भव है और रात भर युद्ध रहे , पर भद्रिक को अधिक आशा नहीं करनी चाहिए । " इसी समय चर ने एक पत्र देकर कहा - “ भन्ते सेनापति , काप्यक का यह पत्र है । " सिंह ने मुहर तोड़कर पत्र पढ़ा। फिर शान्त स्वर में कहा - “ भन्ते सेनापति , आर्य भद्रिक ने आत्मसमर्पण कर दिया है । वे आ रहे हैं । " “ भद्रिक बड़े तेजस्वी सेनापति हैं आयुष्मान्, हमें उनके प्रति उदार और सहृदय होना चाहिए । " “ निश्चय ये अस्थायी सन्धि के नियम हैं , अब इससे अधिक हम कुछ नहीं कर सकते । ” सेनापति सुमन ने नियम पढ़े और लेख लौटाते हुए कहा - “ठीक है आयुष्मान् , तू स्वयं बुद्धिमान है। " “ परन्तु क्या आप भद्रिक का स्वागत करेंगे भन्ते सेनापति ? " " नहीं - नहीं , यह तेरा अधिकार है आयुष्मान् ! मैं आशा करता हूं - तू उदार और व्यवहार -कुशल है। और भी कहीं युद्ध हो रहा है ? " " नहीं भन्ते सेनापति ! ” “ ठीक है, मैं अब चला, आयुष्मान ! " " क्या इसी समय भन्ते सेनापति ? ” " हां , आयुष्मान् ! ”
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