लिच्छवि नायक ने ढोल पीटकर घोषणा की - “ इस पाटलिग्राम पर लिच्छवि गण का अधिकार है, जो कोई मागधजन को आश्रय देगा , उसे सूली होगी । पाटलिग्राम - वासियो ! सुनो, बाहर आओ! प्रतिज्ञा करो कि तुम वज्जीगण को बलि दोगे, तुम्हें अभय ! " वृद्ध ने फिर सिर निकालकर देखा । कांपते -कांपते बाहर आया । आकर उसने सेनापति नायक को अभिवादन किया । नायक ने पूछा - “ ग्राम के और जन कहां हैं ? " “ जीवित सब भाग गए । मृत यत्र - तत्र पड़े हैं । कुछ को वन्य पशु खा गए। " " तुम नहीं भागे ? " " भाग नहीं सकता भन्ते , अशक्त हूं। " “ क्या ग्राम में अन्य पुरुष नहीं हैं ? " " जीवित नहीं भन्ते ! " " तो सुनो , तुम अब से वज्जीगण शासन के अधीन हो । " " अच्छा भन्ते ! " " वज्जीगण को बलि देना होगा? " " दूंगा भन्ते! ” “ मागधों को आश्रय देने से सूली होगी ! " “ समझ गया भन्ते ! " " तो तुझे अभय! नायक अपनी सेना लेकर सड़ती लोथों के बीच से होकर चला गया । वृद्ध फिर घर के खण्डहर में जा छिपा ।
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