पृष्ठ:वैशाली की नगरवधू.djvu/४८५

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“ किन्तु सोमभद्र, तुमने कैसे इस अभियान की सहमति दी ? " “ सम्राट नहीं माने भन्ते सेनापति , उन्होंने बहुत हठ की । " " तो उन्हें जाने क्यों दिया ? " । " इसके लिए वे अड़ गए । उन्होंने इस अभियान की योजना स्वयं बनाई थी । नेतृत्व भी स्वयं किया था । आर्य उदायि को सहमत होना पड़ा और मुझे भी स्वीकृति देनी पड़ी । परन्तु ऐसी दुर्घटना की तो सम्भावना न थी । " “ यदि सम्राट् हत हुए ? " " तो भन्ते सेनापति , अति दुर्भाग्य का विषय होगा। " " भद्र सोम, यदि सम्राट् हत हुए तो जम्बूद्वीप की अपार क्षति होगी । पूर्व का साम्राज्य भंग हो जाएगा । " “ यदि बन्दी हुए? ” “ पर किसी ने देखा तो नहीं । इसी में एक गूढ़ संकेत मुझे मिलता है भद्र, हमें गुरुतर कार्य करना होगा। " “मैं प्राणान्त उद्योग करूंगा भन्ते सेनापति ! " “ आश्वस्त हुआ भद्र, अब हमें मागध सैन्य को स्वतन्त्र भागों में विभक्त करना होगा, एक भाग तो तुम लेकर वैशाली को निर्दयतापूर्वक रौंद डालो , दूसरे भाग को लेकर लिच्छवि महासैन्य पर घोर संकट उपस्थित करूंगा। उसका वैशाली से सम्बन्ध -विच्छेद करना होगा । मैं एक भी लिच्छवि भट को जीवित नहीं लौटने दूंगा । " ____ “ और मैं एक भी हH, एक भी प्रासाद, एक भी अट्टालिका वैशाली में खड़ी नहीं रहने दूंगा , मैं सबको भस्म का ढेर बनाकर वैशाली को खेत बनाकर उस पर गधों से हल जुतवाऊंगा। " “ तभी सत्य प्रतिकार होगा भद्र , सम्राट् मृत हों या बन्दी, जम्बूद्वीप का पूर्वी द्वार भंग नहीं हो सकता। जब तक यह ब्राह्मण खड्गहस्त जीवित है, मगध साम्राज्य अजेय अखण्ड है। ” ___ महासेनापति भद्रिक का अंग - प्रत्यंग क्रोध से कांप उठा , उनके नेत्रों से एक तीव्र ज्वाला - सी निकलने लगी। उन्होंने उसी समय सब सेनापतियों , नायक - उपनायकों को बुलाकर एक अत्यन्त गोपनीय युद्ध -मन्त्रणा की । सम्राट का लोप होना यत्न से गुप्त रखा गया । सेनापति उदायि आहत हुए हैं , यह प्रचारित किया गया ।