पृष्ठ:वैशाली की नगरवधू.djvu/४७२

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पैदल सेना के प्रत्येक सैनिक को एक - एक शम पर खड़ा किया गया । अश्वारोहियों को तीन - तीन शम के अन्तर पर , रथ और हाथियों को पांच-पांच शम के अन्तर पर , धनुर्धारियों की सैन्य को एक धनुष के अन्तर पर स्थापित किया गया । इस प्रकार पक्ष, कक्ष और उरस्य की पांचों सेनाओं का परस्पर का अन्तर पांच- पांच धनुष रखा गया । अश्वारोही के आगे रहकर उसकी सहायतार्थ युद्ध करने के लिए तीन भट , हाथी और रथ के आगे पन्द्रह - पन्द्रह भट तथा पांच-पांच अश्वारोही तथा घोड़े- हाथियों के पांच पांच पादगोप नियुक्त किए गए। इस प्रकार एक - एक रथ के आगे पांच-पांच घोड़े, एक - एक घोड़े के आगे तीन - तीन भट , कुल मिलाकर पन्द्रह जन आगे चलने वाले और पांच सेवक पीछे रहे । उरस्य स्थान में नौ रथों के ऐसे तीन त्रिकों की स्थापना हुई । अभिप्राय यह कि तीन-तीन रथों की एक - एक पंक्ति बनाकर तीन पंक्तियों में नौ रथों को खड़ा किया गया । इसी प्रकार कक्ष और पक्ष में भी । ऐसे नौ उरस्य , अठारह कक्ष और अठारह पक्ष में मिलकर एक व्यूह में पैंतालीस रथ , पैंतालीस रथों के आगे दो सौ पच्चीस अश्वारोही और छ : सौ पचहत्तर पैदल भट , परस्पर की सहायता से युद्ध करने को स्थापित हुए । इस व्यूह की रचना तीन समान त्रिकों से की गई थी , इससे यह समव्यूह कहाया । परन्तु इसकी व्यवस्था इस प्रकार की गई थी कि आवश्यकतानुसार इसमें दो - दो रथों की वृद्धि इक्कीस रथ -पर्यन्त की जा सकती थी । ___ बची हुई कुछ सेना का दो -तिहाई भाग पक्ष , कक्ष तथा एक भाग उरस्य में आवाप , प्रत्यावाप , अन्वावाप और अत्यावाप करने की भी व्यवस्था तैयार रखी गई थी । लिच्छवि सैन्य को तीन स्वतन्त्र व्यूहों में सेनापति सिंह ने विभक्त किया था । एक ‘पक्षभेदी व्यूह स्थापित किया गया , इसमें सेना के सम्मुख दोनों ओर हाथियों को खड़ा किया गया और पिछले भाग में उत्कृष्ट अश्वारोहियों को , उरस्य में रथों को । इसका संचालन मल्लराज प्रमुख सौभद्र कर रहा था । दूसरी सैन्य को मध्यभेदी व्यूह में स्थापित किया गया था , इसमें हाथी मध्य में , रथी पीछे और अश्वारोही अग्रभाग में स्थापित थे । इसका संचालन लिच्छवि सेनानायक वज्रनाभि कर रहा था । तीसरी सेना को अंतर्भेदी व्यह में बद्ध किया गया था जिसमें पीछे हाथी , मध्य में अश्वारोही और अग्रभाग में रथों की योजना थी । रथों , अश्वों एवं हाथियों की रक्षा की व्यवस्था मागधों ही के समान थी । इस सैन्य का संचालन गान्धार तरुण कपिश कर रहा था । लिच्छवि सेनापति सिंह ने स्वयं हाथियों का एक शुद्ध व्यूह रच उसे अपने अधीन रखा था । इसमें केवल सन्नाह्य हाथी ही थे जिनकी संख्या तीन सहस्र थी । ये सब युद्ध की शिक्षा पाए हुए धीर और स्थिर थे। इसमें उन्मत्त और मदमस्त हाथियों को लौह - श्रृंखला में बद्ध करके अग्रभाग के दोनों पक्षों में रखा गया था । इस शुद्ध हस्ति -व्यूह को लेकर सेनापति सिंह लिच्छवि सैन्य के उरस्य में स्थित थे। बीस सहस्र कवचधारी अश्वों का एक शुद्ध व्यूह लिच्छवि सेनापति महाबल की अध्यक्षता में कक्ष के दोनों पावों में सन्नद्ध किया गया था तथा पदाति सैनिकों के एक शुद्ध व्यूह को आगे दो भागों में और धनुर्धारियों के शुद्ध व्यूह को कक्ष के दोनों पावों में समुचित सेनानायकों की अध्यक्षता में स्थापित किया हुआ था ।