पृष्ठ:वैशाली की नगरवधू.djvu/४७१

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142 . प्रकाश - युद्ध मिही के उस पार की मल्लों की भूमि पर वज्जी सैन्य का स्कन्धावार निवेश था । मही- तट पर दुर्गों का तांता बंधा था तथा वहां एक अस्थायी पुल नावों का बांधा गया था , जिसकी रक्षा गान्धार काप्यक के गान्धार भट यत्नपूर्वक कर रहे थे। मिही- तट के इन दुर्गों में वज्जियों के शस्त्र - भण्डार और रक्षित सैन्य बहुत मात्रा में थे। मिही की धारा अति तीव्र होने के कारण नीचे से ऊपर आकर इन दुर्गों पर आक्रमण करना सुकर न था । वज्जी स्कन्धावार निवेश और मगध स्कन्धावार निवेश के मध्य में पाटलिग्राम था । पाटलिग्राम की स्थापना दूरदर्शी मगध महामात्य वर्षकार ने वज्जियों से युद्ध करने के लिए की थी । अभी उसमें , बहुत कम घर , हर्म्य और राजमार्ग बन पाए थे। बस्ती बहुत विरल थी । उत्तरकाल में जहां बैठकर गुप्त-वंश के महामहिम सम्राटों ने ससागर जम्बूद्वीप पर अबाध शासन - चक्र चलाया था , वह एक नगण्य साधारण ग्राम था । मागध राजपुरुष और कभी -कभी सैन्य की कोई टुकड़ी मास - आधा मास पाटलिग्राम में आकर टिक जाती थी । फिर उनके लौट जाने पर लिच्छवि राजपुरुष लोगों को घर से निकालकर बस रहते थे। उन्हें वहां से भगाने के लिए फिर मगध सेना मंगानी पड़ती थी । ग्रामजेट्ठक एक बूढ़ा मागध सैनिक था , उसके अधीन जो दस - बीस सैनिक थे . कछ भी व्यवस्था नहीं कर सकते थे । इस निकल घस के कष्ट से पाटलिग्राम के निवासी कृषक बड़े दु: खी थे । उन्हें पन्द्रह दिन लिच्छवियों के अधीन और पन्द्रह दिन मागधों के अधीन रहना पड़ता था । बहुधा दोनों ही राजपुरुष उनसे ज़ोर - जुल्म करके बलि उगाह ले जाते थे। अपने घर और अपनी सम्पत्ति पर उनका कोई अधिकार ही न था । न वे और न उनकी सम्पत्ति रक्षित थी । इसी से पाटलिग्राम की आबादी बढ़ती नहीं थी । कोई भी इस द्वैधे शासित ग्राम में रहना स्वीकार नहीं करता था । इस समय ग्राम का पूर्वी भाग लिच्छवि सेनापति के अधीन था और पश्चिमी भाग मागध सैन्य के । ग्रामवासी युद्ध के भय से भाग गए थे और घरों में दोनों पक्षों के सैनिक भरे थे जिन्हें प्रतिक्षण आक्रमण से शंकित रहना पड़ता था । __ मागध स्कन्धावार निवेश से पांच सौ धनुष के अन्तर पर पाटलिग्राम के दक्षिण समभूमि पर मागध सेनापति सोमप्रभ ने संग्राम - क्षेत्र स्थापित करके समव्यूह की रचना की । सम्पूर्ण व्यूह के पक्ष , कक्ष और उरस्य , ये तीन अंग स्थापित किए गए । सेना के अग्रभाग के दोनों पार्यों में ‘पक्ष स्थापित कर , उसके दो भाग कर , वाम माहिष्मती के सुगुप्त की ओर, दक्षिण पक्ष प्रतिष्ठान के सुवर्णबल की अधीनता में स्थापित हुआ । पीछे के ‘ कक्ष के भी दो भाग करके वाम कक्ष भोज समुद्रपाल और दक्षिण कक्ष आन्ध्र के सामन्त भद्र की अधीनता में स्थापित किया गया । मध्य ‘ उरस्य में स्वयं सेनापति सोमप्रभ स्थित हुए । उनके पाश्र्वरक्षक बंग के वैश्रमणदत्त, अवन्ती के श्रीकान्त और कलिंग के वीर कृष्णमित्र स्थित हुए ।