पृष्ठ:वैशाली की नगरवधू.djvu/४६५

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139 . प्रयाण स्थान , आसन और गमन का ठीक-ठीक विकल्प कर ग्राम - अरण्य आदि अध्वनिवेश में ईंधन, धान्य , जल , घास आदि की समुचित व्यवस्था -प्रबन्ध कर भोजन , वस्त्र , शस्त्रास्त्र को यत्नपूर्वक सुरक्षा में संग ले , मौहूर्तिकों से नक्षत्र दिखा , मागध सैन्य - सहित सम्राट ने प्रयाण किया । सेना के अग्रभाग में दस सेनापतियों का नायक , बीच में अन्त : पुर और सम्राट् इधर उधर शत्रु के आघात को रोकने वाली अश्वारोहिणी सैन्य चली । सेना के पिछले भाग में हाथी चले । अन्न , घास, भूसा आदि सामग्री सब ओर से ले जाया जाने लगा। जंगल में उत्पन्न होनेवाला आजीविका - योग्य अन्न, घास आदि सामग्री संग्रह होती चली । अन्न , वस्त्र आदि व्यवहार्य साधन लगातार छकड़ों , हाथियों पर लद - लदकर सेना के साथ चले । आसार अपसार को सुरक्षित कर सबसे पिछले भाग में सेनापति पर्याय से अपनी - अपनी सेना के पीछे नियत हो चले । सेना का अग्रभाग मकर -व्यूह रचकर , पश्चात् भाग शकट -व्यूहबद्ध होकर आगे बढ़ा । पाश्र्वभाग की सैन्य वज्र - व्यूह से , तथा चारों ओर का बहि : सैन्य सर्वतोभद्र -व्यूह में बद्ध हो आगे बढ़ा। कहीं- कहीं तंग घाटियों में , दरारों में , सूची - व्यूह भी बनाना पड़ा । इस प्रकार सर्वतोभावेन रक्षा -व्यवस्था क्रम स्थापित कर मागध सैन्य ने प्रयाण किया । पहले कुछ दिन प्रतिदिन एक योजन , फिर दो योजन मार्ग सैन्य ने काटा। धन- धान्य से समृद्ध शत्रु के नगरों को नष्ट करते हुए, पृष्ठस्थित केन्द्रों तथा शत्रु और अपने देशों के मध्यवर्ती सामन्तों एवं उदासीन राजाओं को साम , दाम , दण्ड , भेद नीति से वशवती करते हुए, संकट -विषम राह को साफ करते हुए, कोश, दण्ड , मित्र शत्रु आटविक सैन्य, विष्टि और मुख्य सैन्य सबकी सुख - सुविधा और अनुकूल ऋतु का विचारकर सम्राट कभी धीरे - धीरे , कभी द्रुत गति से वैशाली की ओर अग्रसर हुए । कभी हाथियों द्वारा छिछली नदियों को पार किया । कभी नदी में स्तम्भ - संक्रम करके , कभी सेतुबन्धन , कभी नाव , लकड़ी तथा बांस के बेड़े बनाकर, कभी तूम्बी , चर्मकाण्ड, दूति , गण्डिका और वेणिका आदि साधनों से मागध सैन्य ने नदियों को पार किया । कठिन मार्गों, भारी दलदल , गहरे जल , गुफा, पर्वत , आदि को पार करती हई , पर्वतों पर चढ़ती - उतरती , तंग, पथरीले, विषम पहाड़ी मार्गों पर होती हुई भूख, प्यास और थकान से खिन्न हो बीच -बीच में सुस्ताती, ज्वर, संक्रामक महामारी तथा दुर्भिक्ष की बाधाओं को सहन करती; बीमार , पैदल, हाथी , अश्वों के साथ मागध सैन्य आगे बढ़ती चली गई । धीरे - धीरे सेना ने स्कन्धावार में प्रवेश कर वहां उपनिवेश किया । निरन्तर आने वाली मागध सैन्य का राजगृह और वैशाली के बीच राजमार्ग पर तांता लग गया ।