137. युद्ध विभीषिका वैशाली में आतंक छा गया । मगध - महामात्य ब्राह्मण वर्षकार और ब्राह्मण सोमिल , अनुचर, कलत्र और बटुकवर्ग- सहित बन्दी कर लिए गए। नन्दन साहु, सेट्ठि कृतपुण्य भी बन्दी हो गए ! उनका घर - द्वार सभी राजसैनिकों ने अपने अधीन कर लिया । सेट्टिपुत्र पुण्डरीक को आचार्य गौड़पाद के दायित्व पर उन्हीं के घर में दृष्टिबन्धक कर लिया गया । नगर के घाट- द्वार, राजमार्ग सभी बन्द कर दिए गए । बाहर जाने - आने के लिए सैनिक आज्ञापत्र लेना अनिवार्य हो गया । अन्तरायण के सब खाद्य - भण्डारों पर सैनिक अधिकार हो गया । विदेशियों की बारीकी से छानबीन होने लगी । बहुत जन संदिग्ध पाए जाकर बन्दी बना लिए गए । जलाशय , कूप , राजमार्ग, वीथी , दुर्ग , द्वार , तोरण स्तम्भ , बुर्ज - सभी पर सैनिकों का अनवरत पहरा बैठा दिया गया । सब स्वस्थ , वयस्क पुरुष अनिवार्य रूप में सैनिक बना दिए गए । संपूर्ण गृह और व्यवहार - उद्योग युद्धोद्योगों में परिणत हो गए । शस्त्रास्त्र और कवच एवं विविध युद्ध - साधनों का रात -दिन निर्माण होने लगा। लिच्छवि तरुणियां भी सेवा- सेना में भरती होकर शुश्रूषोपचार की शिक्षा पाने लगीं । सेना को शस्त्र बांट दिए गए । उनकी टुकड़ियां नगर के भीतर - बाहर चलती -फिरती दृष्टि पड़ने लगीं। सारे नगर में सैनिक अनुशासन की व्यवस्था कर दी गई । आज्ञा - उल्लंघन के लिए मृत्यु - दण्ड घोषित कर दिया गया । वैशाली के मनमौजी और स्वभाव ही से हंसोड़ लिच्छवियों के मुखों पर हास्य -विनोद के स्थान पर चिन्ता , व्यग्रता और उद्वेग दीख पड़ने लगे। तरुण भट अपने अपने शस्त्र चमकाते , अश्व कुदाते , बढ़- बढ़कर बातें बघारते इधर -उधर घूमते दीख पड़ने लगे । बहुत लोग बहुत भांति की बातें करते । कोई दस्यु बलभद्र की अद्भुत सर्वत्र गमन की शक्ति सत्ता को खूब बढ़ा - चढ़ाकर कहता , कोई मगध सम्राट की कामुकता , वीरता तथा साम्राज्यलिप्सा की आलोचना करता । बहत जन इस युद्ध का सम्बन्ध अम्बपाली से जोड़ते । अम्बपाली के आवास की आभा भी फीकी पड़ गई। सैनिक नियमों के आधार पर उसके आवास में सार्वजनिक प्रवेश निषिद्ध कर दिया गया । अम्बपाली के आवास को विशेष रीति पर सैनिक निरीक्षण और संरक्षण में रख दिया गया । राजकोष , महत्त्वपूर्ण लेख और बहुमूल्य सामग्री भूमिगर्भ -स्थित भूगृहों में रख दी गई । - वैशाली के सब आबाल- वृद्ध विचलित , व्यग्र और आशंकित हो उठे । युद्ध की विभीषिका ने उन्हें विमूढ़ कर दिया ।
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