पृष्ठ:वैशाली की नगरवधू.djvu/४६१

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

अन्य सुविधा पाने से मगध के बहुत मल्लाह - कुल वज्जी में आ बसे हैं ; यह आप जानते हैं कि हमारे मल्लाह दास नहीं हैं , वे सुखी , सम्पन्न और हमारे गण के सहायक हैं । उनके जेटकों ने स्वेच्छा से ही अपनी सेवाएं हमें समर्पित की हैं । हमारे गान्धार मित्र काप्यक की सम्मति से हमने एक विशेष प्रकार की हल्की रणतरी बनाई है , जिनका कौशल गुप्त रखा गया है । ये हमें नौ -युद्ध में अति महत्त्वपूर्ण सहायता देंगी। हाथियों, रथों व अश्वों को पार कराने के लिए विशाल नौकाएं तथा उत्तम घाट बना लिए हैं ।... ___ “ अब यदि हम दक्षिण और पूर्वी सीमा पर दृष्टि देते हैं , तो हमारी पदाति सेना लगभग मगध सेना के समान ही संगठित एवं संख्या में बराबर है तथा उनकी शिक्षा आधुनिक गान्धार - पद्धति पर की गई है । अश्व , रथ , गज , हमारे पास मागधों से कम अवश्य हैं , परन्तु अवन्ती और मथुरा में बहुत - सी मागधी अश्वारोही तथा गजसेना वहां फंसी है । समय पर उसकी सहायता सम्भव नहीं है, फिर हमारे पास नौ मल्लगण और अठारह कासी - कोल के गणराज्यों का अक्षुण बल है। सब मिलाकर हम पौने दो अक्षौहिणी सेना समर में भेजने की आशा करते हैं । " अब नौबलाध्यक्ष स्यमन्तक ने कहा - “मित्र ! सिंह ने जो अपना बल - परिचय दिया है, उसके सम्बन्ध में मैं केवल यही कहना चाहता हूं कि मेरी दृष्टि में हम मागधों से अधिक सुगठित हैं । हमें यह जान लेना चाहिए कि दक्षिण का युद्ध ही निर्णायक युद्ध होगा और मैं अपने मित्र काप्यक और उसके गान्धार वीरों की सहायता से , जिनकी हम प्रतीक्षा कर रहे हैं , बहुत आशान्वित हूं। मैं कह सकता हूं कि हमें मिही तटवर्ती दुर्ग और रणतरियां ही सफलता प्रदान करेंगी । मागध सब बातों का प्रत्युत्तर रखता है पर हमारी उन दो सहस्र रणतरियों का उसके पास कोई प्रत्युत्तर नहीं है। ” काप्यक ने कहा - “ भन्ते , सेनापति और मित्रगण यह जानकर प्रसन्न होंगे कि मुझे समाचार मिला है कि गान्धार से जो वैद्यों और भटों का दल चला है, वह दो ही चार दिन में यहां पहुंचनेवाला है । यहां मैं नौका- युद्ध का एक रहस्य निवेदन करता हूं जिसे मैंने भलीभांति निरीक्षण किया है । मिही नदी दिधिवारा के पास गंगा में मिलती है , किन्तु सेना उससे बहुत नीचे पाटलिग्राम के सामने है । इससे मागधों को तो हम भरपूर हानि पहुंचा सकते हैं पर वे हमारा कुछ भी नहीं बिगाड़ सकते । " । इस पर सेनापति सिंह ने कहा - “ तो भन्ते सेनापति , मैं प्रस्ताव करता हूं कि हम अब तैयार हैं और हमें मागधों के आक्रमण की प्रतीक्षा नहीं करनी चाहिए, तथा अवसर पाते ही प्रथम आक्रमण कर देना चाहिए। पहले आक्रमण के लिए तट की सेनाओं, नौकाओं और हाथियों को पहले तथा रथों , अश्वों और पदातिकों को बाद में प्रयुक्त करना चाहिए और मिही की रक्षित सेना को उस समय , जब शत्रु थक जाए । ___ इस पर महाबलाध्यक्ष सुमन ने कहा - “ तो आयुष्मान्, ऐसा ही हो । तू सैन्य को तैयार रख और अवसर पाते ही आक्रमण कर ; मैं अमात्य वर्षकार और उनके सहायकों को बन्दी करने की आज्ञा प्रचारित करता हूं । "